नामापराध से सदा ही सावधान रहना चाहिए तथा यह भी समझे रहना चाहिए कि इन समस्त नामापराधों में भी भगवद्भक्तों के प्रति किया हुआ अपराध भगवान से भी सर्वथा अक्षम्य रहता है । इन नामापराधों का प्रायश्चित कोई भी वैदिक, पौराणिक कर्म नहीं है।
नामापराध को या तो महापुरुष अथवा हृदय से अपने आपको अपराधी मानकर भगवन्नाम-संकीर्तन करना ही क्षमा कर सकता है ।
दस प्रमुख नामापराध हैं-
१. साधूनिंदा ।
२. शिव एवं विष्णु में भेदबुद्धि रखना ।
३. गुरु अपमान ।
४. बेदादि शास्त्रों का अपमान ।
५. हरिनाम में अर्थवाद की कल्पना ।
६. नाम के बल पर पाप करना ।
७. कर्म धर्म आदि से नाम की तुलना करना ।
८. नाम ग्रहण में असावधानी ( उपेक्षा ) ।
९. नाम महात्म्य सुनकर भी नाम में रुचि ना होना ।
१०. हरि विमुख ( नास्तिक ) को नामोपदेश करना ।
- श्री महाराज जी । ( साधना में बाधा , पेंज ६२, & ६३ )
सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
राधे राधे ।