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एक साधक का श्री महाराजजी से प्रश्न

हम तुम्हारे हैं और तुम हमारे हो, इन दोनों में क्या अन्तर है ?

श्री महाराजजी द्वारा उत्तर - 'हम तुम्हारे हैं' यह मधुस्नेह है । इस स्नेह में साधक प्रियतम में कमी देखने लगता है । अत: इसमे पतन होने की संभावना रहती है । यह भाव भक्ति तक जाता है ।
'तुम हमारे हो' यह धृतस्नेह है । इसमें सम्पूर्णत: निष्काम प्रेम होता है । वह केवल देना-देना ही जानता है । तुम अपना बनाओ या न बनाओ, हमने तुम्हें अपना बना लिया । यह भाव उच्च है । ऐसा साधक अनुराग भक्ति तक जाता है ।

                  राधे - राधे ।

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