पार्ट 2
इनके साथ हुई श्री महाराज जी से प्रथम दर्शन की लीला
एक महिला ने बताया कि स्वामी मुकुंदानन्द जी त्रिदंडी सन्यासी के रूप में बड़ा सा तिलक लगाए, जपमाला फेरते हुये श्री महाराज जी के प्रथम दर्शन हेतु प्रतीक्षारत बैठे हुये थे तो वह भी वहीं थीं। उन्होंने देखा, श्री महाराज जी अपने कक्ष से निकले, इनके निकट गये, चुपचाप इनकी जपमाला और उसकी मंजूषा ली। अपनी जेब में रखी और पुनः भीतर कक्ष में चले गये। अब इन सबका क्या अर्थ था ? क्या बुद्धि प्रधान विवेकी त्रिदंडी संन्यासी को वैधी वैधी भक्ति को अनुराग भक्ति में प्रवेश का निर्देश था या और कुछ ? ये तो गुरू ही जानता है, शिष्य भी अनुभव कर सकता है। हम तो गलत सही का अनुमान ही लगा सकते हैं।
श्री महाराज जी के निर्देशानुसार स्वामी जी उसी वर्ष मनगढ़ साधना प्रोग्राम में आ गये। मनगढ़ शिक्षा ग्रहण करते हुये श्री महाराज जी के अनन्त ज्ञान की झलक मिली। ये श्री महाराज जी का वेद वेदान्त का ही नहीं वरन् सभी धर्मों, पंथो के आप्त ग्रंथों, बाइबिल, कुरान आदि का पूर्ण ज्ञान देख कर चमत्कृत हो उठे। यह सर्वविदित है और सबका अनुभव है कि श्री महाराज जी को किसी ने भी कभी वेद वेदान्त या किसी आप्त ग्रन्थ को पढते नहीं देखा। ऐसा लगता है जैसे वेद की ऋचाएं और सभी आप्त ग्रन्थ हाथ जोडे खडे हैं कि हमारी ओर भी निहार लीजिये। निगमागम सिद्धांतो का विवेचन एवं समन्वय करते हुये आप्त ग्रन्थ से उद्धरण देते देख सरस्वती वृहस्पति भी चमत्कृत हो सकते हैं फिर हम सबकी क्या बिसात।
स्वामी श्री मुकुंदानन्द जी को इस्कॉन के जीवन काल में श्री चैतन्य महाप्रभु से प्रगाढ़ प्रेम हो गया था। मनगढ़ में शिक्षा ग्रहण करते हुये और उसके बाद भी इन्हें बार बार ऐसा अनुभव हुआ जैसे राधाकृष्ण मिलित श्री चैतन्य महाप्रभु स्वरूप पुनः श्री कृपालु महाप्रभु स्वरूप में अवतरित हुए हों। फिर तो ये पूर्ण शरणागत हो गये l श्री महाराज जी द्वारा प्रदत्त अपना नया नाम श्री मुकुंदानन्द ले श्री महाराज जी के प्रेम रस सिद्धांत के प्रचार सेवा में 1990 से जुटे हैं। इनके शुरूआत के दिनों में प्रचार का कार्य उडीसा था। यह वह प्रदेश है, जहां जगन्नाथपुरी है जो चैतन्य महाप्रभु की लीला स्थली है। यहाँ के लोगों का महाप्रभु के प्रति विशेष अनुराग होना स्वाभाविक ही है। चैतन्य सिद्धांत एवं श्री महाराज जी का प्रेम रस सिद्धांत भी तो एक ही है। ऐसे श्री कृपालु प्रेम रस सिद्धांत का प्रचार करने एवं प्रेम रस मदिरा में डूबने और डुबाने का कुछ और ही रस है। इन्होंने गाँव गाँव जाकर अपनी मण्डली के साथ प्रचार प्रसार कार्य प्रारंभ कर दिया है। वर्तमान में देश विदेश के कोनों कोनों में श्री महाराज जी के तत्व दर्शन का प्रचार प्रसार कर रहे हैं l इनकी निश्चित मान्यता है कि श्री महाराज जी की प्रयोगात्मक साधना पद्धति, कृष्ण भक्ति प्रासंगिक और आज की आवश्यकता है। यही वह दर्शन है जिसकी मानवता को प्रतीक्षा थी।
जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु की जय
प्रेम रस सिद्धांत की जय
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राधे राधे ।