स्वामी श्री मुकुंदानन्द जी को प्रथम दर्शन श्री महाराज जी का
श्री प्रेम रस सिद्धांत का प्यार
पार्ट 1
भारत वर्ष (पंजाब) के एक विशिष्ट घराने में उत्पन्न श्री मुकुंदानन्द जी को जगत में वह सब कुछ प्राप्त था जिसके लिये हम लालायित रहते हैं l इन्होंने विश्वविख्यात इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (IIT) दिल्ली से बी.टेक. करने के उपरान्त देश के शीर्षस्थ इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (कलकत्ता) से एम०बी०ए० की डिग्री प्राप्त की। श्री स्वामी मुकुंदानन्द जी भी टाटा गु्प में एक एक्जीक्यूटिव के पद पर एक वर्ष तक कार्यरत रहे। परन्तु इनका मन कुछ और पाने को व्याकुल था, मायिक उपलब्धियां इन्हें बाँध नहीं पायीं l इनके संस्कार एवं विवेक ने इन्हें सत्य की खोज के लिये प्रेरित किया और कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि ये सब कुछ त्याग कर इस्कॉन (International Society of Krishna Consciousness) से जुड गये।( हरे राम हरे कृष्ण) नाम से विख्यात इस संस्था में भी ये शीघ्र विशेष हो गये। इन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया और त्रिदंडी संन्यासी बन गये। इन्होंने पांच वर्षो तक इस्कॉन में सेवा की, जिसमें तीन वर्षों तक तो ये इस्कॉन बाम्बे के अध्यक्ष के रूप में सेवारत थे। संयोगवश इनको प्रेम रस सिद्धांत पुस्तक देखने को मिली। पुस्तक के मुख्य आवरण पृष्ठ पर अंकित श्री महाराज जी की महाभाव मुद्रा की छवि ने इन्हें मन्त्रमुग्ध कर लिया। श्री महाराज जी का दर्शन पाने के लिये इनके मन में तीव्र उत्कंठा हुई, यह व्याकुल हो उठे। अब भला गुरूदेव इनकी पुकार कैसे न सुनते ?
कुछ ही दिनों के अन्तराल में इन्हें सुश्री ब्रज परिकरी देवी का प्रवचन सुनने का सुअवसर, वहीं बाॅम्बे मे प्राप्त हुआ। उनके प्रवचन से ये इतना प्रभावित हुये कि सोचने लगे, हमारी संस्था द्वारा लाखों रूपए का व्यय होता है, बड़े बड़े मन्दिर बनवाये जाते हैं फिर भी हम लोगों को भगवद् मार्ग पर आकर्षित नहीं कर पाते और इन देवी जी को देखो कितना अच्छा प्रचार कर रहीं हैं, अपने विलक्षण प्रवचन और संकीर्तन द्वारा सबका मन मोह ले रही हैं। यदि मैं इनके प्रवचन में झाडू भी लगाऊँ तो मेरी कृष्ण सेवा ज्यादा उच्चतर होगी ( धन्य है ऐसी दीनता को ) l इनकी व्याकुलता और भावना रंग लाई। लगभग तत्काल ही राम नवमी 1989 के अवसर पर बाॅम्बे में इन्हें अपने गुरूदेव के दर्शन हुये। प्रथम मिलन में ही श्री महाराज जी ने इन्हें अपनी सेवा में ले लिया और कहा कि मैं तुम्हें उचित शिक्षा दूँगा। तुम अक्टूबर की साधना में मनगढ़ आ जाओ। इसी संदर्भ में एक छोटी सी किन्तु विचित्र घटना का उल्लेख करना उचित लगता है, जो श्री महाराज जी से जुड़ी हैं।
प्यारे प्यारे श्री महाराज जी की जयक्रमशः
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राधे राधे ।