वेद भगवान् के बराबर हैं।
जैसे भगवान् बुद्धि से परे है, ऐसे वेद भी बुद्धि से परे है।
तुम क्या समझ लोगे वेद को?
मैं छोटी-सी एक्साम्प्ल दूँ?
वेद में लिखा है—
अनन्ते स्वर्गे लोके ज्येये प्रतितिष्ठति प्रतितिष्ठति
(केनोपनिषद्, ४-९)
भगवत् प्राप्ति के बाद स्वर्ग में जाता है।
हैंऽऽऽ...?
भगवत् प्राप्ति के बाद स्वर्ग में?
अरे, स्वर्ग में तो गधे जाते हैं, मूर्ख लोग,
‘प्रमूढ़ा’, वेद कह रहा है।
अरे, यहाँ पर स्वर्ग का मतलब बैकुण्ठ है।
लो और सुनो!
अस्माल्लोकादुत्क्रम्य अमुष्मिन् स्वर्गे लोके ज्येये प्रतितिष्ठति
(ऐतरेयोपनिषद्, ३-१-४)
आत्मबोधोपनिषद् में भी ये मन्त्र है, (१-७)।
स्वर्ग जाता है, ये वेद में लिखा है और स्वर्ग माने होता है, भगवान् का लोक।
फिर देखो वेद में—
दिव्ये ब्रह्मपुरे ह्येष व्योम्न्यात्मा प्रतिष्ठितः
(मुण्डकोपनिषद्,२-२-७)
ब्रह्मपुर में जाता है।
ब्रह्मपुर में?
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन
भगवान् तो कहते हैं, ब्रह्मलोक भी माया का लोक है।
जाके लौटना पड़ेगा (८-१६, गीता)।
वेद कहता है, अरे भई! ब्रह्म माने भगवान् का लोक।
लो, और सुनो!
अरे, भागवत में देखो—
यातुधान्यपि सा स्वर्गमवाप जननीगतिम्।
पूतना स्वर्ग गई मरने के बाद।
स्वर्ग गई?
अरे, क्या बोल रहे हो?
सद्वेषादिव पूतनापि सकुला
ब्रह्मा जी तो कह रहे हैं, गोलोक गई (१०-१४-३५)।
परिवार सहित गोलोक गई थी।
अघासुर, बकासुर वगैरह सब को ले के।
अरे, भागवत के शुरू में देखो, यज्ञ कर रहे हैं—
सत्रं स्वर्गायलोकाय
स्वर्गलोक के लिये।
यहाँ स्वर्ग का अर्थ भगवान् का लोक है।
तो, वेद को क्या समझोगे?
भगवान् के लिये जीव शब्द भी आया है, प्राण भी आया है, आकाश भी आया है, आत्मा भी आया है, ब्रह्म भी।
अरे, ये अलग-अलग अर्थ के शब्द हैं और अर्थ है— ब्रह्म। अग्नि, वायु सब भगवान् के लिये आये हैं।
परोक्षवादो वेदोऽयं
कोई नहीं समझ सकता।
इसलिये कहा है—
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
जिसने भगवत् प्राप्ति की है,
उसको भगवान् ने बताया है, ज्ञान दिया है वेद का,
उससे सीखो।
वो जानता है वेद का अर्थ।
#भक्तियोगरसावतार_जगद्गुरुत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज |
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राधे राधे ।