राधे राधे
आत्मीय पत्र
श्री महाराज जी द्वारा साधकों को लिखे गये पत्रों के अंश
तुमने अपना जीवन सफल बना लिया है क्योंकि तुम निष्कपट भाव से सेवा कर रहे हो। मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। राधे राधे बोलते रहो।
तुम कृष्ण दास रूप आत्मा हो। अतएव संसार में तुम्हारा विषय नहीं है। अतएव दिव्य शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध द्वारा ही आत्मा की तृप्ति होगी। संसार शरीर के लिये है अतएव श्री कृष्ण उनके नाम, रूप, लीला, गुण, धाम और जन में ही मन लगाओ।
तुम तो बडे भाग्यशाली हो जो अपने जीवन को गुरू के लिए अर्पित कर दिया है। बस थोडा सा और सुधार कर लो। सदा अपने आप को अपने इष्टदेव के साथ ही मानो। दोषों से बचो।
मानव देह क्षणभंगुर है, ऐसा सोचकर जीवन का एक एक क्षण अपने लक्ष्य में ही लगाओ। पर दोष न देखो। अपने दोष ही देखो। क्रोध आदि भूल कर न करो। सदा अपने शरण्य को अपने साथ मानो। अपने शेष जीवन का महत्व सोचकर क्षण क्षण अपने शरण्य के चिन्तन में व्यतीत करो। मन को खाली न रहने दो। निराशा न आने पाये। अन्तिम काल का चिन्तन ही प्रमुख काम देता है।
तुम्हारी सेवा से मैं बहुत खुश हूं तुम मेरे सच्चे शिष्य बनोगे। तुम्हारी सेवा का सदा ऋणी रहूंगा। तुम घर के सब काम देखते रहना एवं सबसे प्रेम और दीनता से बात करना। तुम्हारा तो जीवन ही मेरे लिए अर्पित है। बस इसे निभाना।
मुझे जो करना है वह तो मैं करता ही हूं, करूँगा ही। किन्तु तुमको जो साधना बतायी गयी है वह करते रहो।
तुमको सब कुछ मिल चुका है। बस अपने जीवन धन को जीवन मान कर सेवा करो।
तुम मन को सदा सेवा में ही लगाये रहो। तुम्हारे समान भाग्यशाली इने गिने लोग ही विश्व भर में हैं। तुम मीठा बोलने एवं दीनता का अभ्यास बढाओ।
अपने आपको अपने शरण्य की धरोहर मान कर उनकी नित्य सेवा करने में ही अपना भूरि भाग्य मानों। सदा यही सोचो कि मेरे जीवन का एक क्षण भी बिना सेवा के नष्ट न हो। सदा उन्हीं का चिन्तन आदि करते रहो।
मानव देह मिला, गुरू मिला संसार से पृथक हो गये। सेवा मिली। इतनी सारी कृपा करोडों मनुष्यों में से भी किसी को नहीं मिलती। अतएव इस सुवर्ण अवसर को काम में लो।
24 घंटे में कितने घंटे राधाकृष्ण का चिन्तन करते हो। बस इसी प्रश्न का का उत्तर एकान्त में सोचो। और यदि बारह घंटे भी नहीं करते हो तो क्या चाह है, सोचो।
प्रतिक्षण अपने शरण्य का ही चिन्तन करो। सदा सर्वदा उनको अपने साथ रखो।
तुम्हारे काम का मैं ऋणी हूं। बस स्नेह बढाते जाओ। एक दिन श्याम कृपा होगी!
प्यारे प्यारे महाराज जी की जय।
सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...
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राधे राधे ।