सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

*भक्ति कितने प्रकार की होती है...?*

श्रीमद्भागवतम् 7.5.23 में भक्ति के ९ प्रकार बताए गए हैं जिसे नवधा भक्ति कहते हैं।

*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*

श्रवण (परीक्षित),
कीर्तन (शुकदेव),
स्मरण (प्रह्लाद),
पादसेवन (लक्ष्मी),
अर्चन (पृथुराजा),
वंदन (अक्रूर),
दास्य (हनुमान),
सख्य (अर्जुन) और
आत्मनिवेदन (बलि राजा)
*इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं....*

*श्रवण:* 🌸
*श्री कृष्ण* की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

*कीर्तन:* 🌸
*श्री​ कृष्ण* के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम अर्थात हरे कृष्ण महामंत्र का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।

*स्मरण:* 🌸
निरंतर अनन्य भाव से *श्री कृष्ण* का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।

*पाद सेवन:* 🌸
*श्री कृष्ण* के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना।

*अर्चन:* 🌸
मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से *श्री कृष्ण* के चरणों का पूजन करना।

*वंदन:* 🌸
भगवान *श्री कृष्ण* की मूर्ति को पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।

*दास्य:* 🌸
*श्री कृष्ण* को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।

*सख्य:* 🌸
*श्री कृष्ण* को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।

*आत्म निवेदन:* 🌸
अपने आपको भगवान *श्री कृष्ण* के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।

राधेकृष्ण राधेकृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे

राधेश्याम राधेश्याम श्याम श्याम राधे राधे

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे ..... चौपाई : काल क...