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"सर्वसगुण सम्पन्ना श्यामा श्यामा"

श्रीवृन्दावन की सघन निकुंजों में सखियन संग प्रिय हियवासिनी श्यामा जु श्य्या पर पौढ़ी ललिता सखी जु की मधुर वीणा राग रागिनियों की रसभीनी रसतरंगों के हिंडोरे में झूलतीं लीन हैं। (... प्यारी जु एक बात को मोहे डर आवे री ... ) ललिता जु एक एक कर कई पद गा गा कर श्यामा जु का मन लुभा रहीं हैं और जिस तन्मयता से वीणा वादिनी ललिता जु वीणा की तारों पर सुकोमल रसांगुरियों को थिरका रहीं हैं उसी तन्मयता से श्यामा जु इन्हें हियवासित प्रियतम संग डूबीं हुईं सुन कर ग्रहण कर रहीं हैं।
ललिता सखी जु हर एक भाव में श्यामा जु के सौभाग्य को सरहा रहीं हैं कि उन्हें बेमोल अमानी परमाधीन प्रियतम प्रेम करने वाले विश्विमोहन श्यामसुंदर मिले और जैसे जैसे रागनियों में छुपे भाव खिल रहे वैसे ही श्यामा जु में प्रियतम मिलन की उत्कण्ठा गहरा रही।   (वीणा से झरती झंकारों से प्रियतम हिय की झंकारें अभिन्न रस दे रही , प्यारे जु के हिय से सखी एक ही प्यारी को सुख देने को है ... वीणा नहीँ प्रियतम हिय राग झनक रही... अलि प्यारे के हिय की गा रही , प्यारीजु भी प्यारेजु के हिय की झनक-झनक पुलक रही ... मनहर-स्मृति श्रीप्रियाजु का भाव श्रृंगारक)   ... प्रियतम श्यामसुंदर जु की गुणावली के गान में यहाँ श्यामा जु डूबीं हैं और वहाँ निकुंज द्वार पर छुप कर वेदी पर बैठे श्यामसुंदर जु श्यामा जु को निहार रहे हैं कि कितनी प्रियता से रसीली श्यामा जु भावसुमन नवखिलित क्यारी की अति ही सुंदर सुकोमल कमलिनी सी शय्या पर विराजित हैं। (निजहिय के अनिवर्चनीय भाव अलि के वादन-गान में ऐसे झर रहे कि केलि अपने सम्पूर्ण भाव श्रृंगार में डूब गई ... परस्पर हिय में अलि भाव झारी को पी रहे दोऊ रस बाँवरे ... यह भाव वह कह नहीँ पाते तो ऐसी भाव स्वरूपिणी प्रियाजु झाँकी निरख भी सखीजु के इस अनुरागित राग अलाप से पी  रहें प्रियतम प्यारे ...)
(प्यारी तू गुणनराई सिरमौर ... )
श्यामा जु इतनी लीन हो चुकी हैं कि उन्हें अपनी सुधि नहीं और उनके नयनों से प्रेमाश्रु आंतरिकवर्षण कर हियवसित श्यामसुंदर को रसमय कर रहे हैं ... भीतर हियवेदी पर झरते प्रेमाश्रु जैसे हिमवर्षा प्रियहिय पर ही... ।  और यह देख श्यामसुंदर वीणा-राग के मध्य से ही वहीं बैठे वेणु पर श्यामा जु की सर्वस गुणातीत रसझांकी का गान करने लगते हैं जिसे सुन ललिता सखी जु उनकी ताल से ताल मिलाकर गाने लगतीं हैं और उधर श्यामा जु वेणुरव सुनते ही श्यामसुंदर जु की त्रिभंगी मुद्रित रसछवि का ध्यान करतीं उन्हें ढूँढने लगतीं हैं। (भीतर और बाहर खोजती यह नित्य विहारिणी निज हिय में प्रियतम के विहार की परमोच्च स्थिति में वंदना में डूब गई है सखी और प्यारे जु के प्यारी गुणगान में ... ललिते भी सच्ची उन्हीं की दासी.. श्रीहरिदासी...प्यारी उर सुखार्थ... )
उनके चरण जैसे श्यामसुंदर उन्हें अपने हिय में बसाए हुए हों ऐसे मंद मंद इधर उधर थिरक उठे हैं।
श्यामसुंदर जु अपने सौभाग्य को सराहते हुए श्यामा जु की गुणावली का वेणुगान कर रहे हैं और उनके प्रेमाश्रु श्यामा जु के चरणकमलों का अपने हृदय में प्रक्षालन !!
"सर्वसगुणसम्पन्ना श्यामा जु के चरणों में अत्यंत दुर्लभ शक्ति चिन्ह और करों में प्रेमलक्षणा भक्ति की सौभाग्य की रेखाएँ हैं जो प्रियतम श्यामसुंदर जु का शक्ति व प्रेम स्वरूपा अह्लाद हैं।
श्यामा जु निरखने में जितनी सुघड़ व नयनाभिराम रूप सौंदर्य की राशि हैं उससे भी अधिक अनंतानंत सद्गुणों की अतरंग रसप्रतिमा हैं।
पतिमनहरिनी !रसरासविलासिनी !नागरी !ललित लड़ैती रसिकिनी !गौरांगी हरिवल्लभा !चारूचंद्रिका मौलिनी !श्रीफलतुल्यपयोधरी !पृथुनितम्बिनी !कृसकटिधारिणी !बिनुभूषण आभूषिणी !नवलकिशोरी कोमला !नवयोवना !वीणा वेणु नाद विमोहिनी !अह्लादिनी !उरुन्मादिनी !वल्लभ शोकनिवारिनी !नित्यबिहारिणी !निधिवनमनि हरिदासि हितनी !मधुरा !नित्य किशोरी !चंचल कटाक्षिणी मृगनयनी !उज्ज्वल मृदुमधुर हास्यकारिणी !उन्मत्त अंगगंधधारिणी जिससे श्यामसुंदर भ्रमररूप सदैव उनका अवलोकन करते रहते !संगीत नृत्य पंडिता !मृदुभाषिणी !रसचतुरा !विनीत !करूण !दयालु !लज्जाशीला !गम्भीरा !कुशला !धैर्यशीला !महाभावा !कीर्तिदा !स्नेहिका !मर्यादाधारिणी !सखीप्रधाना !रसविदग्धा !प्रियमनवासिनी जिनके अधीन सदैव प्रियतम !वृंदावनेश्वरी !कुंजनिकुंजबिहारणी !रसीली गर्बीली लाड़ली !रति विलास विनोदिनी  !उरजनी पियपरसिनी !अधर सुधारस वर्षिणी !गोकुलेशहिय हर्षिणी !मुरली क्षवणनि !वृषभानुनंदिनी !ब्रजरसरानी !भोरी बरसानेवाली !उज्ज्वला !सुकुमारी !प्राणनि रससरसनी !सुरतरंग संग्रामिनी !प्रियहित सिंगारिनी !सहज आनंददायिनी !विरहव्यथानसाविनी !  नित्यनवविलासिता !तत्सुखसुखिता !सर्वरसविद्दातीतनी !मदनमान भंगिनी !
चपला !जमुना जलक्रीड़ानी !कोकिलपिकबैनी !कामिनी !कृष्णचिरसंगिनी !रसिकमनहरिणी !कोक कला प्रवीणा !प्रेमदायिनी !समस्तविकार खंडिनी !मानिनी !चतुरा !मोहन मनमोहिनी !"
ऐसी सर्वगुणातीत उदार स्वामिनी जु के आंगिक...वाचिक...मानसिक...परसम्बंधगत अनंतानंत सगुण जिनके गान में श्यामसुंदर लीन हैं कि ऐसी प्रिया जु सर्वसगुणसम्पन्ना मेरी सहगामिनी हैं जिनसे मैं श्यामसुंदर अह्लादित उन्मादित व सर्वगुणकारी रसीला कलापांडित्य शालीन सदा बना रहता हूँ और जिन्हें सुनकर सखियाँ प्रेमलब्धा अविचला प्रियतमा श्यामा जु पर बलिहारी जातीं हैं और सदा सेवायत रहती हैं।
प्रिया जु की रसछटा प्रियतम की अंगकांति के प्रतिबिम्ब को पाते ही उनकी ओर अग्रसर हो चलीं।जैसे ही प्रिया जु की रसमाधुर्य युक्त आभा प्रभा रससौंदर्य के परम रसपारखी व पंडित श्यामसुंदर जु के समक्ष आती है तो सम्पूर्ण निकुंज लताएँ पक्षी व सखियाँ मौन उन्हें रसोन्मत्त पर प्रेमजड़ता से निहारते रह जाते हैं और श्यामा जु वेणु में प्रियतम श्यामसुंदर जु द्वारा गाई जा रही स्वयं की नामावली का पान कर रसपूरित हिय से वंशी को उनके अधरों से हटा उन्हें गहन भुजपाश में बाँध लेतीं हैं ....

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