हम सबके श्री महाराज जी एक अति असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी हैं, महापुरूष अति असाधारण व्यक्तित्व के स्वामीं होतें हैं , महापुरूषों में भी प्रकार होते हैं आप सब जानतें हीं हैं। तो हमारे श्री महाराज जी सर्वोच्य कक्षा के महापुरूष हैं । यह अनुभव प्रमाण, शास्त्र प्रमाण , वाक् प्रमाण , लक्षण प्रमाण , ज्ञान प्रमाण, कार्य प्रमाण, भाव प्रमाण , शास्त्रार्थ प्रमाण( काशी विद्वत् परिसत् के ५०० मूर्धण्य विद्वानों को पराजित करना) आदि बहुत प्रमाणों से स्वत: सिद्ध है । अब ऐसे अति विशिष्ट महापुरूष की शरणागति करने वाला साधारण जीव कितना शौभाग्यशाली होगा हमें सोचना चाहिए , फील करना चाहिए ।
ऐसे सर्वोच्य कोटी के महापुरूष का महत्व जिस दिन हम जीव समझ जाऐंगें, हममें अपने श्री महाराज जी के प्रति स्वत: श्रद्धा, विश्वास , उनसे पराकाष्ठा का प्रेम , समर्पण तत्क्षण हो जाएगा ।
फिर हम कभी अपने समय को फालतु कार्यों में , गौसिप्स में , दुसरे किसी की बुराई में , आलोचना में नहीं गमाऐंगें । हम प्रत्येक वस्तु , व्यक्ति , जीव में अपने इष्ट के उपस्थिति को मानेंगें , सारा जग राममय महसूस होगा ।
कोई हमसे उलझना भी चाहेंगें तो हम नहीं उलझेंगें ।
ऐसा करना परम आवश्यक हैं क्योंकि हम भगवत् मार्गी हैं , भक्ति मार्गी हैं , हरि गुरून्मुख हैं , हमें हर समय अपने ह्रदय को , पात्र को खाली रखना हैं , पात्र शुद्ध रखना है , खाली पात्र लेकर हीं तो एक भिखाड़ी भीख मांगता है संसार में भी । अब किसी भिखाड़ी का पात्र उलुल जलुल से भड़ा है तो उसको संसार में भी भीख कौन देगा भला , कहेगा देखो देखो बर्तन रूप्या पैसा रोटी से कपड़ा से भड़ा है और फिर भी भीख मांग रहा है !
इस प्रकार हमें अपना बर्तन हमेशा खाली रखना हैं , इसमें किसी से राग द्वेष , इर्ष्या, अपेक्षा , तिरस्कार और संसार का कुड़ा कबाड़ा विल्कूल नहीं भरना हैं हमें अपने बर्तन पहले तो खाली रखना हैं फिर उसे साफ करते रहना है । अब साफ किस चीज से करते रहना हैं तो गुरूदेव के तत्वज्ञान रूपी , दिव्य पद रूपी साबुन से हर पल साफ रखना है , यानी तत्वज्ञान का बार बार रिभिजन करते रहना है जिससे हमारा पात्र शुद्ध होते रहें ।
फिर इसी पात्र में तो पल पल हरि प्रेम का बुंद टपकेगा , यह बुंद ही ब्रजरस अम्बुधि है जिसका पान हम ज्यों ज्यों नित प्रतिदिन करेंगें , हमारा प्रेम हरि से गुरू से और बढ़ेगा , बढ़ता जाऐगा , और जब हमारा उनसे प्रेम अपने चरम पर पहुंचेगा तो वो झट से अपना दिव्य प्रेम हमारे पात्र में उड़ेल देंगें , वो तो हमारी ओर पल पल देख रहें हैं , हमारा इंतजार कर रहें हैं , वो व्याकूल हैं हमें दिव्य प्रेम देने के लिए पर कमी हमारे में हीं हैं । हम ही लापरवाह हैं , हम हीं लोकरंजन से ग्रसित हैं , हम उनकी ओर कहां देख रहें हैं , हम तो संसार की तरफ देख रहें हैं कि कौन क्या कर रहा है , कौन क्या बोल रहा है , हम तो संसार को रेसपौंस दें रहें हैं । हम तो संसार से संसारी बातों पे रियेक्ट कर रहें हैं ।
तो भला वो हमें किस प्रकार संभालें , हमें कैसे रेसपौंस दें , कैसे हमारे प्रेम को बढ़ाने में सहायता करें!
एक मरीज जबतक अपने डौक्टर को रेसपौंस नहीं देगा ,भला किस प्रकार उस मरीज को वो डौक्टर ठीक करेगा ।
एक स्टुडेंट जब तक अपने शिक्षक को कक्षा में नहीं सुनेगा , नही समझेगा और सिखाई बात को नहीं अमल करेगा तो किस प्रकार वो परीक्षा में पास करेगा ? कितना भी विद्वान शिक्षक क्यों न हो , भला वो क्या कर लेगा ।
अत: हमें अपने हरिगुरू को रेसपौंस देना होगा । एकांत में भी और सुकांत में भी , हर पल , पल पल अपने हरिगुरू के प्रति उत्तरदाई होना होगा , जब हम उत्तरदाई होंगें और हमसे एक भी गलतियां होगी तो हम क्षमा मांगेंगें अपने गुरू से , हम उनको भलें ही ना देख रहें हैं किंतु वो पल पल हमें देख रहें हैं , हमारे विचार नोट कर रहें हैं । हमारा हर पल उनके निगाहों में हैं ।
हमसे गलतियां होती है और वो माफ करतें जातें हैं इस इंतजार में कि अगली बार हम गलती नहीं करें।
वो तो इतना चाहतें हैं कि " तुम मुझे , युगलसरकार को अपने ह्रदय में रखो , हर पल याद रखो की मैं तुम्हारे ह्रदय में वैठा हुँ और तुम अपना संसार का काम कर रहें हो , फिर तुमसे गलतियां संसार में भी कम होते जाएगा , मैं तुम्हारे प्रत्येक कार्य को कर्मयोग बना दुंगा जिससे तुम संसार में भी सफल बनोगें , मैं तुम्हारा योग क्षेम वहन करता रहूंगा । और तुमको भगवान के एरिया में जल्दी जल्दी खिचुंगा । पर सहयोग तो तुम्हीं को करना होगा ।
जब तक मरीज खुद ठीक होना नहीं चाहेगा , सहयोग नहीं करेगा तो भला डौक्टर कितना भी बड़ा क्यों ना हो वो कुछ भी ठीक नहीं कर पाएगा ।"
इसलिए हमें खुद को सौंपना होगा ऐसे परम तत्व को , वो सर्वसमर्थ हैं , सर्वांतर्यामी हैं , सब ठीक कर देगें ।
इसलिए जैसे जैसे हम अपने ह्रदय रुपी वर्तन को खाली करके गुरू के तत्वज्ञान को बार बार रिभिजन रूपी जल से साफ करते जायेंगें वैसे वैसे हमें उनसे अपने ह्रदय में प्रेम का अनुभव होगा , उनके आंनदायक उपस्थिति का अनूभव बढ़ता जाएगा ।
यह अनुभव प्रमाण हैं ।
हे गुरूदेव , हमारे परम पिता हम केवल आपके हैं हमें हमारे झोली में आप अपने दया का भीख दे दो । हमें हर समय आप महसुस हों आप हीं हमारे साधन हो , साध्य भी आप ही हो और लक्ष्य भी आपहीं हो , हमें इस संसार के कोलाहल से बचा लो , हमें केवल तुम, तेरा प्रेम और तेरी सेवा चाहिए प्रभु ।
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राधे राधे ।