(((((((((((( दूध का स्वाद ))))))))))))
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नन्दग्राम में जिस कुटी में सनातन गोस्वामी भजन करते थे, वह आज भी विद्यमान है।
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इसमें रहते समय एक बार मदनगोपाल जी ने उनके ऊपर विशेष कृपा की।
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यद्यपि वे मदनगोपालजी को वृन्दावन में छोड़कर यहाँ चले आये थे, मदनगोपाल उन्हें भूले नहीं थे।
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वे छाया की तरह हर समय उनके आगे-पीछे रहते और उनके योग-क्षेम की चिन्ता रखते।
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सनातन गोस्वामी इस समय लीला-स्मरण में इतना डूबे रहते कि उनहें खाने-पीने की भी सुधि न रहती।
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मधुकरी भिक्षा के लिये कहीं जाने का तो प्रश्न ही न था।
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नन्दग्राम के व्रजवासी उन्हें दूध दे जाया करतें वही उनका आहार होता।
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भक्तिरत्नाकार के अनुसार उड़ीसा के महाराज प्रतापरुद्र के पुत्र पुरुषोत्तम जाना ने दो राधा-विग्रह गोविन्ददेव और मदनगोपाल जी के लिये वृन्दावन भेजे थे।
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स्वप्नादेश के अनुसार उनमें से छोटे को राधारूप में मदनगोपालजी के बाम भाग में और बडत्रे को उनके दाहिने ललितारूप में स्थापित किया गया।
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तभी से उनका नाम हुआ मदनमोहन।
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एक बार दैवयोग से तीन दिन तक कोई दूध लेकर न आया।
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चौथे दिन एक सुन्दर गोप-बालक आया लोटे में दूध लेकर।
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बोला- "बाबा, मइया ने तेरे तई दूध भेज्यौ है, पाय लै।"
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सनातन गोस्वामी बालक के मधुर कण्ठ-स्वर का अपने कर्ण-पात्रों से और उसकी रूप-माधुरी का नयन-अंजलि से कुछ देर पान करते रहे।
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उसकी घुँघराली, काली अलकों पर लाल पगड़ी बरबस उनके मन-प्राण खींच रही थी।
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उन्होंने नन्दग्राम में उस बालक को पहले कभी नहीं देखा था।
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उसे देर तक रोक रखने के लिये उन्होंने उसी की भाषा में उससे एक के बाद एक कई प्रश्न पूछ डाले-
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"लाला, तू कौन को है ? कहाँ रहे ? तेरे मइया-बाप को कहा नाम है ? तेरे कै भइया हैं ? इत्यादि।
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बालक ने अपने माँ-बाप का नाम बताया, पता ठिकाना बताया और कहा-"हम चार भाइया हैं। मैं सबन ते छोटो हूँ।"
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दूध देकर बालक चला गया। पर उसकी छबि सनातन गोस्वामी के मन में बसकर रह गई।
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जब दूध पिया तो उसके अप्राकृत स्वाद और सौरभ से उनकी आँखे खुल गयीं।
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बालक की छवि में उन्हें अपने ही मदनगोपाल जी की छवि भासने लग गयी।
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उस छलिये का छल अब उनकी समझ में आ गया।
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फिर भी वे उसके बताये ठिकाने पर जाये बगैर न रह सके।
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वहाँ जाकर उन्होंने उसे और उसके घरवालों को खोजने की बहुत चेष्टा की। पर वह निरर्थक सिद्ध हुई।
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मन आनंद अपार उतारे
कान्हा की जैकार पुकारे
जिससे कण-कण दीप्त निरंतर
हमको रहना उसी सहारे
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साँसों में सपने उजियारे
पहुँच गए कान्हा के द्वारे
मौन मगन मनमोहन की धुन
इसे छोड़ मन कहीं ना जा रे
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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राधे राधे ।