श्री जू का पुष्प श्रृंगार
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एक सखी श्री जू के श्रृंगार के लिए पुष्प चयन करने लगती है। बहुत सुंदर सुंदर पुष्प देख मन ही मन प्रसन्न होती है। आहा ! इतने सुंदर पुष्प देख मेरी स्वामिनी जू कितनी प्रसन्न होंगी। इनकी पुष्पमाला बनाऊँगी और अपनी स्वामिनी जू को धारण करवाऊँगी । कितने दिन बाद लाडली जू के लिए पुष्प माला बनाने का सौभाग्य मिला मुझे। इसी आनंद में डूब बहुत सारे पुष्प चयन कर लौटती है ।
इन सुंदर पुष्पों को देख देख आनंद से भर रही है । इनसे स्वामिनी जू के लिए माला बनेगी। आहा ! कितना आनंद । जैसे ही माला बनाने हेतु पुष्प उठाती है उस पुष्प में कान्हा की छवि देखती है। कितनी ही देर उस पुष्प को देख एक तरफ रखती है । ओह ! मेरी ऑंखें को भर्म हो रहा है । दूसरा पुष्प उठाती है और उसमे भी कान्हा की छवि। जैसे जैसे पुष्प उठाती जाती है हर पुष्प में अब इसे कान्हा हँसते हुए दिखते हैं।
बड़ी ही विचित्र स्थिति हो रही है सखी की। पुष्पमाला कैसे बनेगी। हर पुष्प में ही कान्हा आ गए हैं । जब भी श्री जू हेतु कोई सेवा मिले कान्हा अवशय वहां उपस्थित होते हैं । श्री जू की सेवा को लालायित हो उठते हैँ । यूँ तो पहले भी कई बार यही किये हैं कभी माला स्वयम् बनाने लगते कभी मेहँदी स्वयम् घोलने लगते कभी सखी से श्री जू की चुनर लेकर दौड़ जाते हैँ। पर ऐसी स्थिति तो कभी नहीं देखी की स्वयम् ही पुष्प बन बैठे हैँ। जहां एक और सखी को आश्चर्य हो रहा है कान्हा को देख देख वहीं मन में वेदना भी हो रही है की मैं तो सेवा भी नहीं पूर्ण कर पाई। बड़े भारी मन से वैसे ही पुष्प श्री जू के लिए रख आती है।
सत्य तो यही है कि कान्हा की भुजाओं का हार ही श्री जू का श्रृंगार है । कान्हा ही उनके वस्त्र आभूषण श्रृंगार सब बन चुके। वो कान्हा को ही हर और देखती हैं और हर ध्वनि उन्हें कान्हा की ही लगती है। अपनी हर वस्तु में उन्हें कान्हा ही प्रत्य्क्ष होते हैँ। ऐसे दिव्य प्रेम का वर्णन वाणी द्वारा कहाँ तक हो पायेगा। केवल यही लिखा जा सकता है इस अद्भुत प्रेम की जय हो।
जय जय श्री राधे
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राधे राधे ।