------------।।ऊँ सा अमृत-मयी मीरा राधाश्चच् तव प्रियतमा।।--------
प्यारी सखियों!!मेरे प्राणाधार प्रियतम को समर्पित ब्रह्मसूत्र "वेदांत दर्शन के प्रथम अध्याय तृतीय पाद का सप्तम् सूत्र प्रस्तुत कर रही हूँ-------
सम्बन्ध --- इसके सिवा ---
स्थित्यदनाभ्यां च ।। 1 । 3 । 7 ।।
स्थित्यदनाभ्याम् = एककी शरीर में साक्षीरूप से स्थिति और दूसरे के द्वारा सुख-दु:खप्रद विषय का उपभोग बताया गया है, इसलिये; च = भी (जीवात्मा और परमात्मा का भेद सिद्ध होता है।
प्यारी सखियों !! अगर पूर्व मीमांसा कर्मों की तरफ प्रेरित करती है तो उत्तर मीमांसा ज्ञान की प्रेरणा देती है,!!
दोनों के समन्वय के संबंध में एक प्यारी सी सुन्दर सी कहानी सुनाती हूँ --
गुजरात के काठियावाड में एक कुम्हार के घर एक अलौकिक बालक का जन्म हुवा था,!!
जिसका नाम माता-पिता ने "गोरा कुम्हार " रख दिया था।
मेरे ह्यदय नाथ!! के अनन्य उपासक पागल तो होते ही हैं,!! रात-दिन 'हरे राम-हरे कृष्ण' का संकीर्तन करते हुवे नाचते रहते थे।
किसी काम धंधे से कोई मतलब नहीं, शादी हो गई एक छ: मास का प्यारा सा पुत्र भी आ गया घर में।
एक दिन उनके पिता ने कहा - "ओ गोरा"!! काम का ना काज का दुश्मन अनाज का,!!
चल घडे बनाने हैं। नाचना ही है तो यह मिट्टी के ढेर के ऊपर नाच, यह मिट्टी गूँथ भी जाएगी और तेरा भजन भी हो जाएगा।
बस फिर क्या था गोरा मिट्टी के ढेर के ऊपर नृत्य करने लगे। 'हरे राम-हरे कृष्ण' का संकीर्तन करने लगे। इतने में छ: मास का बालक बाबा-बाबा करता हुवा आया और अपने बाबा से मिलने की चाह में मिट्टी के ढेर पर चढता हुवा अपने ही बाबा के पाँव से कुचला जाने लगा,!!
क्षत-विक्षत हो गया,!! टुकडे-टुकडे हो गया,!! उसके माँस और खून से मिट्टी लिथड चुकी थी,!! किन्तु गोरा कुम्हार का नृत्य हरे राम- हरे कृष्ण का "आर्तनाद" कहाँ समाप्त होने वाला था!!
फिर क्या था ? मेरे प्रिय-प्रियतम!! ने आकर गोरे कुम्हार के पाँव पकड लिये। आज भक्त के पाँव भगवान ने पकड लिये --
यही राधा भाव है, यही विशुद्ध जीव की पराकाष्ठा है।
प्यारी सखि !! इस शरीर रूपी वृक्ष में बडे आश्चर्य की बात है कि दो आत्माएँ रहती हैं -- एक जीवात्मा और एक परमात्मा; एक मैं और एक मेरे प्रियतम। यह दो पक्षी हैं - एक तो वृक्ष के खट्टे मीठे फलों को चखती है, कभी खुश होती है, कभी दु:खी होती है!!
दूसरा चुपचाप उसे खाते हुवे देखता रहता है।
सखियों !! मैं आपसे एक बात कहूँ -- मैं अपने प्रियतम की पुत्री हूँ,!!
मेरे कान्हा जी मेरे पति ही नहीं मेरे पिता भी हैं।
मैंने जिद्द की चाट खानी है, उन्होंने दिला दी।
मैं खाती रही!!वह मुझे चुपचाप खाता हुवा देखते हैं।
और मैं चटोरी जब बीमार होती हूँ तब भी वह मुझे चुप-चाप देखते हैं। न वे चाट खाते हैं, और न बीमार होते हैं।
यह बात अलग है कि जब मैं बीमार होती हूँ, तो मुझे गोद में लेकर उपचार भी वही करते हैं -कुनैन की गोलियाँ खिलाकर मेरा मलेरिया वही दूर करते हैं।
हरे कृष्णा !! हरे कृष्णा !!कृष्णा कृष्णा हरे हरे।।
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राधे राधे ।