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प्रेमरस

#प्रेमरस

"गुणरहितं, कामनारहितं प्रतिक्षणवर्द्धमानविच्छिन्न सूक्ष्मतरमनुभवरूपम"

प्रेम का ये जो स्वरुप है वह गुणरहित है, कामनारहित है। प्रेम में कामना का लैशमात्र भी नहीं है क्योंकि प्रेम में देने की प्रधानता है। लेने, माँगने (कामना) की प्रधानता नहीं है।

प्रेम का यह स्वरुप प्रतिक्षण बढ़ता ही रहता है कम नहीं होता है। अगर ये प्रेम ठाकुरजी किशोरीजी से होगा तो ये बढ़ेगा ही, और अगर संसार में हुआ तो घटेगा ही घटेगा। प्रेम का स्वरुप केवल बढ़ता ही जाता है, उसका स्वरुप अनंत है जो कभी कम या ख़त्म नहीं होता।

प्रेम तो एकरस है। प्रेम केवल मात्र अनुभवगम्य है। प्रेम को हम किस भाव में लें? किस रस में लें? किस भाव में गिनें? जैसे समुद्र में लहरें उठती है और समुद्र में ही विलय हो जाती है, वैसे ही *प्रेमरस* समस्त भावों को तरंगित करने वाला है।

"प्रेम समुद्र अथाह है, बूढै मिलै न अन्त।
तेहि समुद्र में हो पड़ा, तीर न मिलै तुरन्त।।"

(अमित श्याम गोस्वामी, सेवाधिकारी श्रीराधारानीमन्दिर, श्रीधामबरसाना +919811264984)

जय जय श्रीराधे
🍁🙏🍁

आप सभी भक्त प्रेमरस, श्रीधामबरसाना, ब्रज 84 कोस यात्रा  से अपना नाम एवं शहर इस नंबर +919811264984 पर भेजकर Whatsapp के माध्यम से भी जुड़ सकते है।

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