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दीपावली

दीवाली -1-

     दीवालीपर हमारे यहाँ प्रधानतः चार काम हुआ करते हैं-घर का कूड़ा-कचरा निकालकर घर को साफ करना और सजाना, कोई नयी चीज खरीदना, खूब रोशनी करना और श्री लक्ष्मीजी का आह्वान तथा पूजन करना । काम चारों ही आवश्यक हैं; किंतु प्रणाली में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता है । यदि वह परिवर्तन कर दिया जाय तो दीवाली का महोत्सव बारहवें महीने न आकर नित्य ही बना रहे और कभी उससे जी ऊबे भी नहीं ! पाठक कहेंगे कि यह है तो बड़े मजे की बात परन्तु रोज-रोज इतना खर्च कहाँ से आवेगा ? इसका उत्तर यह है कि फिर बिना ही रूपये-पैसे के खर्च के यह महोत्सव बना रहेगा और उनकी रौनक भी इससे खूब बढ़ी-चढ़ी रहेगी । अब तो उस बात के जानने की उत्कण्ठा सभी के मन में होनी चाहिये । उत्कण्ठा हो या न हो, मुझे तो सुना ही देनी है-ध्यान से सुनिये–

     दीवालीपर हम कूड़ा निकालते हैं,परन्तु निकालते हैं केवल बाहर का ही । भीतर का कूड़ा ज्यों-का-त्यों भरा रहता है, जिसकी गंदगी दिनोंदिन बढ़ती ही रहती है । वह कूड़ा रहता है-भीतर घर में, शरीर के अन्दर मन में । कूड़े के कई नाम हैं-काम, क्रोध, लोभ, अभिमान, मद, वैर, हिंसा, ईर्ष्या, द्रोह, घृणा और मत्सर आदि-ये प्रधान-प्रधान नाम हैं । इनके साथी और चेले-चाँटे बहुत हैं । इन सबमें प्रधान तीन हैं-काम, क्रोध और लोभ । इनको साथियों सहित झाड़ू से झाड़-बुहार बाहर निकालकर जला देना चाहिये । कूड़े-कचरे में आग लगा देना अच्छा हुआ करता है । जहाँ यह कूड़ा निकला कि घर सदा के लिये साफ हो गया । इसके बाद घर सजाने की बात रही । हमलोग केवल ऊपरी सजावट करते हैं जिसके बिगड़ने और नाश होने में देर नहीं लगती । सच्ची सजावट है । अंदर के घर को दैवी सम्पदा के सुन्दर-सुन्दर पदार्थों से सजाने में । इनमें अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, दया, शौच, मैत्री, प्रेम, सन्तोष, स्वाध्याय, अपरिग्रह, निरभिमानिता, नम्रता, सरलता आदि मुख्य हैं ।
जय श्री कृष्ण

'भगवच्चर्चा' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 820, विषय- दीवाली, पृष्ठ-संख्या- १६०, गीताप्रेस गोरखपुर

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्री हनुमानप्रसाद जी पोद्दार

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