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भक्तमति विमला कौर

बाँके बिहारी जी की कृपा...
(((((((( भक्तमति विमला कौर ))))))))
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पंजाब प्रान्त की एक महिला थी जिसका नाम था विमला कौर।
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वह बिहारी जी की एक बहुत भावुक भक्त थी।
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एक दिन उसके मन में ठाकुर जी को पोशाक पहनवाने की इच्छा हूई।
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उसने सोचा मैं ठाकुर जी की पोशाक अपने हाथ से तैयार करूँ और बिहारी जी उसे अगले साल शरद पूर्णिमा को धारण करें।
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इसी आशा के साथ वह ठाकुर जी के लिये पोशाक बनाने लगी।
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अगले वर्ष शरद पूर्णिमा का पर्व भी आ गया।
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वह ठाकुर जी को याद करते-करते वृन्दावन आयी और बहुत खुश होकर गोस्वामी जी को पोशाक देकर बोली:-
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"गोस्वामी जी आज इस पोशाक को धारण करायें।"
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गोस्वामी जी बोले:- "आज आपकी पोशाक धारण नहीं हो सकती, क्योंकि आज दतिया के राजा का आदेश है कि उन्हीं की पोशाक धारण होगी।
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यह सुनकर मानो उस भक्तमती पर वज्र टूट पड़ा।
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उनके मूँह से निकला :- "प्रभु के दरबार में राजा रंक न कोई।"
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उस समय उस भक्तमती के हृदय में कितनी गहरी निराशा थी, इसको कोई नहीं समझ सकता था।
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वो ठाकुर जी के सामने रोने लगी और कहने लगी :- प्रभु आप तो प्रेम के भूखे हो, और आप जानते हो कि ये पोशाक मैंने कितने प्रेम से अपने हाथों से आपके लिए तैयार की है।
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दतिया के राजा की पोशाक आई भारी-भरकम, जरी के काम से लदी हूई आखिर राजा ने जो बनवायी थी।
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वह निरन्तर अपने कारीगरों से आगाह करता रहा था कि पोशाक राजा की ओर से बन रही है,
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ऐसी बननी चाहिए कि लोग देखते ही पहचान जायें कि पोशाक राजा ने बनवायी है।
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जैसे ही गोस्वामी ने बिहारी जी को पोशाक पहनाने के लिये पायजामा पहनाया-पर यह क्या ?
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इतने बड़े राजा की पोशाक जरी के काम से लदी हूई बिहारी जी की बाहों में नहीं आ रही है।
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गोस्वामी जी बहुत कोशिश करते रहे।
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बाहर दर्शनार्थियों की भीड़ जय-जयकार कर रही थी। पर अभी तक जामा भी धारण नहीं हुआ था।
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गोस्वामी जी घबराकर बिहारी जी के चरणों से लिपट गये, उन्हें यह अहसास हो गया कि प्रभु के लिये सब बराबर हैं चाहे वो राजा हो या रंक।
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उन्होंने तुरन्त भक्तमती विमला कौर की पोशाक मंगवायी।
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वह पोशाक ठाकुर जी को बिल्कुल सही आ रही थी और सहज ही ठाकुर जी को पहनने में आ रही थी।
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थोड़ी ही देर में सारा श्रंगार हो गया दर्शन खुल गये।
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राजा अपनी पोशाक में श्री बिहारी जी के दर्शन करने के लिये व्यग्र था, किन्तु यहाँ तो पोशाक दूसरी थी।
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राजा का अहं सातवें आसमान पर पहुंच गया।
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उन्होंने गोस्वामी जी से इस बारे में बात की तो गोस्वामी जी ने राजा को बताया की:-
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आपके द्वारा लायी गयी पोशाक कुछ छोटी थी।
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गोस्वामी जी ने राजा को बताया कि- ये सब ठाकुर जी की ही लीला है, बिहारी जी प्रेम की मूर्ति हैं।
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जब ये बात विमला कौर को पता चली तो उस का मन-मयूर नाचने लगा।
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वह मन्दिर में ठाकुर जी के अपनी पोशाक में दर्शन करके धन्य हो गयी।
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"बोलिये श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय"
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(((((((((( जय-जय श्री राधे ))))))))))
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