हमारे सेव्य कौन हैं ?
हमारे सेव्य श्रीकृष्ण ही हैं । हमारे माने आत्मा का असली सेव्य । क्योंकि विश्व का प्रत्येक व्यक्ति एकमात्र आनन्द ही चाहता है अतः वह आनन्द का दास है । श्रीकृष्ण एवं आनन्द पर्यायवाची शब्द हैं अतः वह श्रीकृष्ण का भी अनजाने में दास ही है । हम अंश हैं वे अंशी हैं । तो अशं अपने अंशी को ही चाहता है । आग की लौ ऊपर को जाती है, सूर्य की अंश है वो, वो अंशी है । पृथ्वी का ढेला पृथ्वी की ओर आता है, पृथ्वी का अंश है । ऐसे ही हर चीज़ का अंश अपने अंशी की ओर भागता है, ये नेचर है । सब नादियाँ समुद्र की ओर भागती हैं क्योंकि समुद्र उनका अंशी है और समुद्र में लीन हो जाती हैं । ऐसे ही हम जीव हैं, भगवान् के अंश हैं इसलिए अंशी को पाना हमारा नेचर है ।
देखो! ये संसार पंचमहाभूत का हैं और इन्द्रियाँ पंचमहाभूत की हैं, इसलिए सजातीय हैं । इनका विषय पंचमहाभूत का संसार है । हम दिव्य हैं, भगवान् के अंश हैं । अतः श्रीकष्ण ही हमारे सेव्य हैं ।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
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राधे राधे ।