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जयश्री राधेकृष्ण, शुभ रात्रि मित्रों

जयश्री राधेकृष्ण, शुभ रात्रि मित्रों
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एक दिन कान्हा को नई लीला सूझी भगवान का काम नित्य नयी नयी लीलाएं करके माता को आनंदित करना था। पूर्व जन्म में नंद बाबा और यशोदा मैया ने भगवान की उपासना करके भगवान से पुत्र रुप में वात्सल्य सुख की ही तो कामना की थी। भगवान उस इच्छा को अधूरी कैसे रहने देते? इसलिए वे नित्य नयी लीलाओं से मां को रिझाने का प्रयास करते रहते थे। कान्हा नंद के आंगन में घुटनो के बल खेल रहे थे। अचानक उनकी दृष्टि अपनी परछाई पर पड़ी। जो उन्ही का अनुसरण कर रही थी। जब वे हंसते थे तो परछाई भी हंसती थी। कन्हैया बहुत खुख हुए सोचा- चलो एक नया साथी मिल गया। घर में अकेले खेलते खेलते मेरा मन ऊब गया था। अब यह रोज मेरा मन बहलाया करेगा।
कन्हैया अपनी परछाई से बोले- भैया तुम कहां रहते हो? चलो हम दोनों मित्र बन जाएं। जब मै माखन खाउंगा तो तुम्हें भी खिलाउंगा। जब दूध पीऊंगा तो तुम्हें भी पिलाऊंगा। दाऊ भैया मुझसे बड़े है इसलिए मुझसे लड़ जाते है। तुम मुझसे लड़ना नहीं। हम लोग खूब प्रेम से रहेंगे। यहां किसी चीज की कमा नहीं है। तुम्हें जितना भी माखन मिश्री चाहिए मै तुम्हें मैया से कहकर दिला दूंगा।
इस प्रकार करते हुए कन्हैया अपनी छाया को पकड़ने का प्रयास करने लगे। बार-बार आगे पीछे जाते, इधर घूमते उधर घूमते परंतु परछाई किसी के पकड़ में आई है जो कन्हैया के पकड़ में आती। जब कन्हैया थककर हार गए और परछाई नहीं पकड़ पाए तो रोने लगे। उन्हे रोता देख यशोदा मां ने पूछा- कन्हैया तुम्हें क्या हुआ, इस तरह क्यो रो रहे हो।
कन्हैया ने माता को अपना प्रतिबिंब दिखाकर बात बदल दी। श्री कृष्ण बोले मां यह कौन है? यह हमारे घर में माखन के लोभ में घुस आया है। मै क्रोध करता हूं तो यह भी क्रोध करता हूं। मैयै आओ ना हम दोनों मिलकर इसे बाहर कर दे। मैया कन्हैया के भोलेपन पर मुग्ध हो गयीं और कन्हैया के आंसू पोछकर उन्हें गोद में ले लिया।
श्री हरि
राधे राधे

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