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राधा का कान्हा के साथ विनोद

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                 ।।  0 ।। जय श्री राधे कृष्ण ।।  0 ।।

किसी समय श्रीकृष्ण राधिका से मिलने के लिए बड़े उत्कण्ठित होकर राधिका के भवन के कपाट को खट-खटा रहे थे.भीतर से राधिका ने पूछा-कोऽसि ?

श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया – मैं कृष्ण हूँ.

राधिका - (कृष्ण शब्द का एक अर्थ काला नाग भी होता है) यदि तुम कृष्ण अर्थात काले नाग हो तो तुम्हारी यहाँ क्या आवश्यकता है ? क्या मुझे डँसना चाहते हो? तुम वन में जाओ.यहाँ तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं.

श्रीकृष्ण - नहीं प्रियतमे ! मैं घनश्याम हूँ.

राधिका - (घनश्याम अर्थ काला बादल ग्रहणकर) यदि तुम घनश्याम हो तो तुम्हारी यहाँ आवश्यकता नहीं है.यहाँ बरस कर मेरे आगंन में कीचड़ मत करो.तुम वन और खेतों में जाकर वहीं बरसो.

श्रीकृष्ण - प्रियतमे ! मैं चक्री हूँ.

राधिका- यहाँ (चक्री शब्द का अर्थ कुलाल अथवा मिट्टी के बर्तन बनाने वाला) कोई विवाह उत्सव नहीं है.जहाँ विवाह-उत्सव इत्यादि हों वहाँ तुम अपने मिट्टी के बर्तनों को लेकर जाओ.

श्रीकृष्ण- प्रियतमे ! मैं मधुसूदन हूँ.

राधिका- (मधुसूदन का दूसरा अर्थ भ्रमर ग्रहणकर) यदि तुम मधुसूदन (भ्रमर) हो तो शीघ्र ही यहाँ से दूर कहीं पुष्पोद्यान में पुष्पों के ऊपर बैठकर उनका रसपान करो.यहाँ पर पुष्पाद्यान नहीं है.

श्रीकृष्ण-अरे ! मैं तुम्हारा प्रियतम हरि हूँ.

राधिका ने हँसकर कहा- (हरि शब्द का अर्थ बन्दर या सिंह ग्रहणकर) यहाँ बन्दरों और सिंहों की क्या आवश्यकता है ? क्या तुम मुझे नोचना चाहते हो ? तुम शीघ्र किसी गम्भीर वन में भाग जाओ.हम बन्दरों और सिंहों से डरती हैं.

इस प्रकार राधिका प्रियतम हरि से नाना प्रकार का हास-परिहास करती हैं.वे हम पर प्रसन्न हों.इस हास-परिहास की लीलाभूमि को कोसी वन कहते हैं.
कोसीवन - जो है हास परिहास की लीलाभूमि ।।

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