राधे श्री राधे !!
विरह रूपी वर से उत्तम और कुछ नहीं 💘 !
... मिलन में प्रीति -उत्कंठा कहाँ "प्यारे जी " को पाने के लिये , वो प्यास कहाँ ? और बिना उत्कंठा के कैसा माधुर्य ?कैसा रस ? कैसी मिठास उस संगम की ?
इसीलिये..यदि कुछ मिले जीवन में तो "श्री नन्दन्दना" का प्रेमपूरित विरह ही मिले !
उनसे मिलने की लालसा रूपी बेल इस हृदयादेश में नित्य पलती , बढ़ती ही रहे बस !
"प्यारे जी" के संगम की उत्कंठा से युक्त जीव के लिए तो ये संपूर्ण जगत ही #प्रियतम बन जाता है !
ये विरह बड़ा विचित्र , बड़ा चमत्कारिक है..ये अवस्था तो सारे त्रिभुवन को ही तन्मय बना देती है !
इससे सुंदर और इससे अन्य वरण करने योग्य और कुछ नहीं.. कुछ भी नहीं----
" सखीरी ! मैं जित देखूँ तित "श्याममयी " है !!!
"श्याम" कुंज वन यमुना "श्यामा" !
"श्याम" गगन घट घटा छई है !!
सब रंगन में "श्याम" भरो है !
लोग कहत ये बात नई है !!
री सखी !
मैं वौरी कि लोगन ही की !
"श्याम" पुतरिया बदल गयी है !!
चन्द्रसार रवि सार "श्याम" है !
मृगमद "श्याम" काम विजयी है !!
नीलकण्ठ को कण्ठ "श्याम" है !
मनो "श्यामता" बेल बई है !!
श्रुति को अक्षर "श्याम" देखियत !
दीपशिखा पर "श्यामतई" है !!
नर देवन की कौन कथा है !
अरी ! अलख ब्रह्म छवि "श्याममयी" है !!
प्यारे जी ! मैं जित देखूँ तित "श्याममयी" है !!
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राधे राधे ।