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((((((((( ठाकुर जी की कृपा ))))))))))

((((((((( ठाकुर जी की कृपा ))))))))))
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उदयपुर के समीप श्रीरूप चतुर्भुज स्वामी का मंदिर है, वहाँ श्री देवजी पण्डा (पुजारी) थे।
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एक दिन उदयपुर के राणा भगवान् श्री चतुर्भुज जी का दर्शन करने के लिए आये, परंतु नित्य की अपेक्षा आज देर से आये।
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समय हो गया था, इसलिए पुजारी श्री देवाजी ने भगवान् को शयन करा दिया और प्रसादी माला जो राणा जी को पहनाने के लिए रखी थी ,उसे उन्होंने अपने सिर पर धारण कर लिया।
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इतने में ही राणा जी आ रहे है, यह समाचार मिला ।
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श्री देवा पण्डा जी ने प्रसादी माला अपने सिर से उतार कर रख ली और राणा जी के आने पर उसे उनके गले में पहना दिया।
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संयोग वश पण्डा जी के सिर का एक सफेद बाल माला मे लिपटा चला गया।
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उसे देखकर राणा जी ने कहा- क्या ठाकुर जी के सिर के बाल सफ़ेद हो गए है ?
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पण्डा जी के मुख से निकल गया-हाँ ।
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राणा जी ने कहा -मै प्रातः काल देखूँगा।
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पण्डा जी ‘हाँ’ ऐसा कह तो गए ,परंतु अब वे घबराये कि राणा जी हमें अवश्य ही मरवा डालेंगे क्योंकि मैंने झूठी बात कही है।
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उन्हें और कोई उपाय नहीं सूझा, वे भगवान् के श्री चरणों का ध्यान करने लगे।
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उन्होंने कहा कि हे हृषिकेश श्री कृष्ण भगवान् ! मेरे प्राणों की रक्षा के लिए कृपा करके आप अपने बालों को सफेद कर लीजिये।
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आप भक्त रक्षक है ,परंतु मेरे मन में तो आपके प्रति नाम मात्र भी भक्ति नहीं है।
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चिन्ता मग्न श्री देवा जी पण्डा से श्री ठाकुर जी ने कहा कि मैंने सफ़ेद बाल धारण कर लिए है, न मानो तो आकर देख लो।
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श्री देवा जी पण्डा दुःख के महासागर में डूबे थे, भगवान् की मधुर वाणी सुन कर उनकी जान में जान आयी।
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मंदिर में जाकर जब उन्होंने दर्शन किया तो सफ़ेद बाल दिखायी पडे।
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तब पण्डा जी ने अपने मन के अनुभव से यह जाना कि ठाकुर जी ने हमारे ऊपर बड़ी कृपा की है, उनकी आँखो में आँसू भर आये।
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प्रातः काल शीघ्र ही चतुर्भुज जी के सफेद बाल देखने के लिये राणा जी मन्दिर में आये और सफ़ेद बालों को देखकर कुछ देर तक तो देखते ही रह गए,
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फिर परीक्षा लेने के लिये उनमे से एक बाल खींचा ।
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बाल के खींचे जाने पर पीड़ा वश ठाकुर जी ने अपनी नाक चढ़ा ली।
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बाल उखड गया और उस बाल के छिद्र से रक्त की धार बह निकली ।
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उसके छींटे राणा जी के शरीर पर पड़े।
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इससे राणा जी को मूर्छा आ गयी और वे पृथ्वी पर गिर पड़े।
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उन्हें अपने शरीर का कुछ भी होश ना रहा।
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एक पहर बाद जब होश आया तब वे इसे करोड़ो अपराधो के समान मानकर क्षमा-प्रार्थना करने लगे।
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श्री भगवान् ने आज्ञा की-तुम्हारे लिए यही दंड है की जो भी राजगद्दी पर बैठे, वह दर्शन के लिए मेरे मन्दिर मे न आये।
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इस आज्ञा के अनुसार उनकी आज्ञा मान कर जो भी राजा उदयपुर की राजगद्दी पर बैठते हैं, वे दर्शन करने मन्दिर मे नही आते है।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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