सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 125से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम |
जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम
श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 125से आगे .....
चौपाई :
कहेउँ परम पुनीत इतिहासा। सुनत श्रवन छूटहिं भव पासा।।
प्रनत कल्पतरु करुना पुंजा। उपजइ प्रीति राम पद कंजा।।
मन क्रम बचन जनित अघ जाई। सुनहिं जे कथा श्रवन मन लाई।।
तीर्थाटन साधन समुदाई। जोग बिराग ग्यान निपुनाई।।
नाना कर्म धर्म ब्रत दाना। संजम दम जप तप मख नाना।।
भूत दया द्विज गुर सेवकाई। बिद्या बिनय बिबिक बड़ाई।।
जहँ लगि साधन बेद बखानी। सब कर फल हरि भगति भवानी।।
सो रघुनाथ भगति श्रुति गाई। राम कृपाँ काहूँ एक पाई।।

भावार्थ: मैंने यह परम पवित्र इतिहास कहा, जिसे कानों से सुनते ही भवपाश (संसारके बन्धन) छूट जाते हैं और शरणागतों को [उनके इच्छानुसार फल देनेवाले] कल्पवृक्ष तथा दया के समूह श्रीरामजीके चरणकमलोंमें प्रेम उत्पन्न होता है।।जो कान और मन लगाकर इस कथा को सुनते हैं, उनके मन, वचन और कर्म (शरीर) से उत्पन्न सब पाप नष्ट हो जाते हैं। तीर्थयात्रा आदि बहुत-से साधन, योग, वैराग्य और ज्ञानमें निपुणता,-।।अनेकों प्रकार के कर्म, धर्म, व्रत और दान, अनेकों संयम, दम, जप, तप और यत्र प्राणियोंपर दया, ब्राह्मण और गुरु की सेवा; विद्या, विनय और विवेककी बड़ाई [आदि]-।।जहाँ तक वेदोंने साधन बतलाये हैं, हे भवानी ! उन सबका फल श्रीहरिकी भक्ति ही है। किंतु श्रुतियोंमें गायी हुई वह श्रीरघुनाथजीकी भक्ति श्रीरामजीकी कृपासे किसी एक (विरले) ने ही पायी है।।
दोहा :
मुनि दुर्लभ हरि भगति नर पावहिं बिनहिं प्रयास।
जे यह कथा निरंतर सुनहिं मानि बिस्वास।।126।।

भावार्थ: किंतु जो मनुष्य विश्वास मानकर यह कथा निरंन्तर सुनते हैं, वे बिना ही परिश्रम उस मुनिदुर्लभ हरिभक्ति को प्राप्त कर लेते हैं।।126।।
शेष अगली पोस्ट में....
गोस्वामी तुलसीदासरचित श्रीरामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, दोहा संख्या 126, टीकाकार श्रद्धेय भाई श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार, पुस्तक कोड-81, गीताप्रेस गोरखपुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे ..... चौपाई : काल क...