सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुछ ऐसे भक्त होते हैं जिनके लिये प्रभु कहते है कि "मैं इनका ऋणी रहूँगा क्योंकि वे प्रीति करते हैं पर माँगते कुछ नहीं।"


कुछ ऐसे भक्त होते हैं जिनके लिये प्रभु कहते है कि
"मैं इनका ऋणी रहूँगा क्योंकि वे प्रीति करते हैं पर माँगते कुछ नहीं।"
..............ऐसे हैं प्रभु जो भक्त की प्रीति में क्या-क्या नहीं
कर देते लेकिन अपनी भनक तक नहीं लगने देते, 
अपने आप को छुपा लेते हैं।
परन्तु एक हम हैं जो हर कार्य में खुद को आगे आगे कर देते हैं।
भक्त भी कभी आगे नहीं आता भगवान को ही आगे रखता है।
.
एक वृद्धा है ,घर का सारा काम खुद करती है।
गाँव में जो मंदिर है उसकी सफाई का काम भी करती है ,
पूजा पाठ ,व्रत उपवास भी करती है।
पानी भरने का काम वृद्धा होने कारण उससे नहीं होता रोज़ एक महिला आकर पानी भर जाती।
एक दिन किसी ने उस महिला को कुछ कह दिया अब वो महिला भी नहीं आई पानी भरने और घर में एक बूंद भी पानी नहीं था।
क्या करे भोजन बनाना था, ठाकुर जी को भोग लगाना था।
वृद्धा भगवान से कहती है रोज़ इतने वर्षों से मंदिर जाती हूँ, तेरा काम करती हूँ, आज मुझे पानी नहीं लाकर दे सकता।
.
इतने में दरवाज़े पर आवाज़ 'आई बड़ी अम्मा'
वृद्धा ने पूछा 'कौन है?'
.
आवाज आई 'मैं पुजारी जी का मंझला पुत्र श्याम हूँ पानी लेकर आया हूँ , कल से पानी का प्रबंध हो जाएगा।
इस तरह ठाकुर जी नित्य प्रति वृद्धा के यहाँ पानी भरने का कार्य करने लगे।
.
एक दिन वृद्धा अम्मा के मन में आया कि पुजारी जी का पुत्र रोज पानी भरकर बिना कुछ खाए चला जाता हैं, आज उसके लिए कुछ भोग बनाकर दे आती हूँ।
वृद्धा अम्मा जब भोग बनाकर मंदिर ले जाती है तो पुजारी जी कहते है कि 'अम्मा मेरे पुत्र श्याम को तो अपनी माँ के साथ गाँव गये हुए पुरे डेढ़ महीना हो गया।'
तो देखा आपने ऐसे हैं भगवान....
.
एक बार कोई प्रेमी भक्त बनकर तो देखे भगवान तो उसके घर पानी भी भरने को तैयार बैठे हैं.....!!!
.
कामना करें तो भगवान् की करें । क्रोध करें तो भगवान् से करें । 
‘क्रोधोऽपि देवस्य वरेण तुल्यः ।’ 
अगर भगवान् हमारेपर क्रोध भी करेंगे तो वह हमारे लिये ‘वरेण तुल्यः’ वर के तुल्य होगा ।
.
नारदभक्तिसूत्र में आया है‒
‘कामक्रोधाभिमानादिकं तस्मिन्नेव करणीयम्’ (६५)
.
मानो हमारे लिये कुछ भी करने का विषय परमात्मा बन जाय । 
.
कामना करें, चाहे क्रोध करें, चाहे लोभ करें, कुछ भी करें तो भगवान् में ही करें । करने से क्या होगा‒
‘तस्मात्केनाप्युपायेन मनः कृष्णे निवेशयेत् ।’
किसी प्रकार से भगवान् में मन लगा दें तो हमारा कल्याण ही है । 
जैसे बिना इच्छा के भी अग्नि के साथ सम्बन्ध करेंगे, स्पर्श करेंगे,भूल से पैर टिक जाय, हमें पता ही नहीं कि यहाँ अंगार है, तो भी वह तो जलायेगी ही‒
.
‘अनिच्छयापि संस्पृष्टो दहत्येव हि पावकः ।’ 
.
ऐसे ही भगवान् का नाम किसी तरह से लिया जाय, भगवान् के साथ किसी तरह से सम्बन्ध किया जाय वैर से भी, प्रेम से भी, भय से भी, द्वेष से भी सम्बन्ध किया जाय, तो वह सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाला है‒
.
‘अशेषाघहरं विदुः’ ---------- यह बात भगवान् के नाम के विषय में बतायी,स्वरूप के विषय में तो कहना ही क्या है ?
भगवान् के साथ सम्बन्ध करने से सम्बन्ध भगवान् के साथ जुड़ जाता है । 
.
जैसे संसार के साथ सम्बन्ध जुड़ने से हमारा जन्म-मरण होता है‒
.
‘कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ।’ 
‘अस्य गुणङ्गः सत् असत् योनिषु जन्मनः कारणम् ।’ 
.
तो हमारे जन्म-मरण का कारण क्या होता है ?
.
‘गुणङ्गः’ गुणों का संग । ऐसे ही निर्गुण में संग हो जायगा तो वह जन्म-मरण में कारण कैसे होगा ? 
यही तो परीक्षित् ने प्रश्न किया है, 
वहाँ रास-पंचाध्यायी में कि ‘भगवन् !गोपियाँ तो भगवान् कृष्ण को सुन्दर पुरुष के रूप में ही जानती थीं, 
ब्रह्मरूप से नहीं, तो गुणों में दृष्टि रखनेवाली गोपियों का गुणों का संग कैसे दूर हुआ ?’ 
उसका शुकदेव मुनि ने उत्तर क्या दिया ? 
.
वहाँ कहा है कि ‘भगवान् से द्वेष करनेवाला चैद्य भी परमात्मा को प्राप्त हो गया’‒
.
‘चैद्यः सिद्धिं यथा गतः’ तो ‘किमुताधोक्षजप्रियाः’ 
जो भगवान् की प्यारी हैं, उनका कल्याण हो जाय,
उसमें क्या कहना ! 
किसी तरह से ही भगवान् के साथ सम्बन्ध हो जाय, किसी रीति से हो जाय ।
वैर से, प्रेम से, सम्बन्ध से, भक्ति से,द्वेष से, भय से ।
.
‘भयात् कंसः,द्वेषाच्चैद्यादयो नृपाः, वृष्णयः सम्बन्धात्, भक्त्या वयम्’ । 
.
नारदजी ने कहा है’‒‘किसी तरह से भगवान् के साथ सम्बन्ध हो जाय तो वह कल्याण करेगा ही ।
**** यह बात है । इस बात को भगवान् जानते हैं और भगवान् के प्यारे भक्त जानते हैं । 
तीसरा आदमी इस तत्त्व को नहीं जानता है ।’***
.
.
.
हे गोविन्द

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे ..... चौपाई : काल क...