सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

"सखि री मैरो नंदनंदन सो नेह '''''''''''''' नंदनंदन सो नेह।"

"सखि री मैरो नंदनंदन सो नेह '''''''''''''' नंदनंदन सो नेह।"
.
..............एक बार गवारियाॅ श्री कृष्ण से बोले कि हम को बैकुण्ठ दिखा दो,,,,,
तो भगवान ने कहाॅ ऑख बंद करो ! खडा कर दिया उन्हे बैकुण्ठ मै,,
अब वहाॅ सब हाथ जोडकर प्रभु के आगे खडे है ! गवारिया ठहरे जंगली !- बोले कि ये देखन मै तो कन्हैया सा लागे पर इसके हाथ चार है,!!
.
तब एक पार्षद ने कहाॅ
कि कहाॅ से आ गए तुम लोग !
वैकुण्ठ मै ऐसे नही बोलना चाहिये !
हाथ जोडकर खडे रहो ! और जय करो !
अब चुप हो गये
आफत आ गयी !
.
फिर वो धीरे धीरे बोले भई यहाॅ तो बडी आफत है !
काहु तरह से हमें बैकुण्ठ से बाहर निकाल दे प्रभु,,,,
.
हमारा तो यमुना जी का किनारा बढिया है !
चाहे कहि कन्हैया के कन्धे पे चढ जाओ और चाहे कैसे बोल लो,,,,
हम ऐसे बैकुण्ठ मै जाकर क्या करेगे
जहाॅ प्रेम का विकास नही !
.
कहने का तात्पर्य है कि प्रेम के बिना ऐश्वर्य अधुरा है, बेमतलब है,,,
प्रेम बडी चीज है !
ईश्वर्य बडी चीज नही है!
.
कि ! जैसे वक्षस्थल पे स्थान पाने के बाद भी,,,,,,लक्ष्मी जी चरण रज चाहती है,,
छोटा बनना चाहती है !
कौई भी गोपी,,,
भगवान के ईश्वर्य रूप पे मोहित नही भई ! ,,,,, ये बात समझ लो !
.
ब्रज के गाॅव मै भगवान चर्तुभुज रूप से प्रकट भये,,,,, तो गोपियाॅ डर गई और उनसे बोली भी नही,,
गोपियाॅ चली गई छोड के प्रभु को !
व्रज मै प्रेम का विकास है !
यहाॅ कृष्ण वनो मै घूम रहा है !
बिना बुलाये सब जगह चला जाता
घर घर चोरी करता है,,,,,,
.
उसमै कौई बडप्पन नही है,,,,गायो की सेवा करता है,,,,,,गोपियो की सेवा करता है,,,
प्रेम है यहाॅ,,,,,सिर्फ प्रेम
.
.
.
.
श्री हरि मन्दिर वृन्दावन
राधे राधे

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे ..... चौपाई : काल क...