🙏🏾🙏🏾 !! श्री हरि: !! 🙏🏾🙏🏾
👉🏿 *जीवन में धर्म का प्रवेश ऐसे होता है ।*
अत्री मुनि के कहने पर माता अनुसूइया ने त्रिदेव को पुन: वास्तविक स्वरूप
प्रदान कर दिया। त्रिदेव ने अनुसूइया जी से कहा हम आपकी भक्ति, आपके तप से
बहुत प्रसन्न हैं। हमारे तीनों के अंश से आपके घर तीन पुत्र जन्म लेंगे।
तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शिव के अंश से ऋषि दुर्वासा तथा विष्णु के
अंश से भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ। ये भगवान का एक और अवतार हुआ।
मनु-शतरूपा की तीसरी पुत्री है
प्रसूति। उनका विवाह दक्ष से किया गया । इनके यहां सोलह कन्याओं का जन्म हुआ। दक्ष ने अपनी तेरह कन्याओं का विवाह धर्म से कर दिया। अपनी चौदह व पंद्रह कन्या में एक अग्नि को दी एक पितरों को प्रदान करी और सोलहवीं कन्या सती का विवाह भगवान शंकर से करवा दिया।
प्रसूति। उनका विवाह दक्ष से किया गया । इनके यहां सोलह कन्याओं का जन्म हुआ। दक्ष ने अपनी तेरह कन्याओं का विवाह धर्म से कर दिया। अपनी चौदह व पंद्रह कन्या में एक अग्नि को दी एक पितरों को प्रदान करी और सोलहवीं कन्या सती का विवाह भगवान शंकर से करवा दिया।
इस तरह दक्ष ने अपनी तेरह
बेटी धर्म को सौंप दी। श्रद्धा, दया, मैत्री, शांति, पुष्टि, क्रिया,
उन्नति , बुद्धि, मेधा, स्मृति, तितिक्षा, धृति और मूर्ति ये धर्म की तेरह
पत्नियां हैं।
यानि धर्म को जीवन में लाना है तो ये तेरह काम करने
पड़ेंगे और इसमें अंतिम पत्नी का नाम है मूर्ति। विचार करिए मूर्ति धर्म की
पत्नी है। कितनी सुंदर बात है।
हम मूर्ति पूजक हैं क्योंकि धर्म की पत्नी हैं मूर्ति। तो मूर्ति माता हैं और धर्म पिता हैं।
इस अंतर को समझ लीजिए । मंदिरों में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कराते हैं
तो मूर्ति धर्म की तेरहवीं पत्नी हैं। वो मां के रूप में हैं और धर्म पिता
के रूप में हैं। माताएं घर को साधती हैं इसलिये मूर्ति मंदिर में रखी जाती
हैं और धर्म की चारों तरफ जय-जयकार होती है। पिता जो होता है वो बाहर की
सारी व्यवस्था जुटाता है। ये एक आदर्श व्यवस्था है।
*जय श्री राधे श्याम*
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राधे राधे ।