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8 प्रसिद्ध तीर्थ: जहां श्राद्ध करने से पितरों को मिलता हैं मोक्ष, जानें खास बातें

8 प्रसिद्ध तीर्थ: जहां श्राद्ध करने से पितरों को मिलता हैं मोक्ष, जानें खास बातें

1. मेघंकर, महाराष्ट्र -घंकर तीर्थ साक्षात भगवान जर्नादन का स्वरूप है। यह महाराष्ट्र के पास बसे खामगांव से लगभग 75 किमी दूरी पर है। यहां स्नान करने का बड़ा महत्व है। इस तीर्थ का वर्णन ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण आदि धर्म ग्रंथों में आता है।

2. लोहागर (राजस्थान)-श्राद्ध कर्म करने के लिए यूं तो अनेक तीर्थ प्रसिद्ध हैं, उन्हीं में से एक तीर्थ ऐसा भी है जिसकी रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं। वह तीर्थ है- लोहागर। यह राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह पिंडदान और अस्थि विसर्जन के लिए भी जाना जाता है

4. सिद्धनाथ, मध्य प्रदेश
सिद्धनाथ तीर्थ मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे है। सिद्धनाथ के समीप ही एक विशाल पवित्र वट वृक्ष है, इसे सिद्धवट कहते हैं। मान्यता है कि इस वट वृक्ष को माता पार्वती ने अपने हाथों से लगाया था। श्राद्ध कर्म के लिए इस तीर्थ का विशेष महत्व है।
5. प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
जैसे ग्रहों में सूर्य है,  वैसे ही तीर्थों में प्रयाग सबसे अच्छा माना जाता है। यहां श्राद्ध कर्म कराने की बड़ी मान्यता है। प्रयाग का मुख्य कर्म है मुंडन और श्राद्ध। त्रिवेणी संगम के पास निश्चित स्थान पर मुंडन होता है। यहां विधवा स्त्रियां भी मुंडन कराती हैं।
6. पिण्डारक (गुजरात)
इस क्षेत्र का प्राचीन नाम पिण्डारक या पिण्डतारक है। यह जगह गुजरात में द्वारिका से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर है। यहां एक सरोवर है, जिसमें यात्री श्राद्ध करके दिए हुए पिंड सरोवर में डाल देते हैं। वे पिण्ड सरोवर में डूबते नहीं बल्कि तैरते रहते हैं।
7. लक्ष्मणबाण, कर्नाटक
भगवान श्रीराम ने पुत्र धर्म का पालन करते हुए अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। जिस स्थान पर श्रीराम ने श्राद्ध किया, वह आज एक तीर्थ के रूप में जाना जाता है। वह स्थान है- लक्ष्मणबाण
8. गया (बिहार)
गया बिहार का दूसरा बड़ा शहर है। यह बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर बसा है। पितृ पक्ष के दौरान यहां रोज हजारों श्रद्धालु अपने पितरों के पिंडदान के लिये आते हैं। मान्यता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से पूर्वजों को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसलिए गया को श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए सबसे अच्छा  माना जाता है।

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