राधे राधे ,,,निकुंज का अन्तरंग भाग ,,,मखमली पीठिका पर श्री राधे जू शुभासीन हैं और प्रियतम श्यामसुन्दर तैल लगा रहे हैं श्री राधारानी के शीश में ....सेवा के उत्साह में प्रियतम श्यामसुन्दर को न तन की सुधि है और न अन्य की स्मृति ही ,,,,,दृष्टि केन्द्रित है अँगुलियों के चालन पर एवं केशों के नर्तन पर .....तेल लगाना तो केश-विन्यास का प्रथम चरण है ,द्वितीय है कंघी करना और तृतीय है वेणी गूंथना ,,,,,,रेशमसम सुललित ,कमलसम सुरभित ,सर्पसम कुचित ,रात्रिसम कज्जलित ,लतासम प्रसरित उन सुदीर्घ केशों में कर चुकने पर ज्यों ही वेणी रचना की अभिलाषा अंकुरित हो और इसके फलस्वरूप ज्यों ही कंघी रखने की त्वरा परिलक्षित हो,उस त्वरा का आभास पाते ही तत्काल मेरे करपल्लव विस्तृत हो जायं और इस विस्तृत करपल्लव पर प्रियतम श्याम निज हाथों से कंघी रख दें ,,,ऐसा कब होगा ??[[अभिलाषामृत से उद्धृत श्री राधेश्याम बंका जी की अदभुत रचना ,,]]जय श्री राधे
सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...
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राधे राधे ।