हे सखी ! जब वे नन्द के लाडले लाल अपने सिर पर मोरपंख मुकुट बाँध लेते हैं, घुंघराली अलकों में फूल के गुच्छे खोंस लेते है, और नए नए पल्लवों से ऐसा वेष सजा लेते हैं, जैसे कोई बहुत बड़ा पहलवान हो l
उस समय प्यारी सखियों !
नदियों की गति भी रूक जाती है l वे भी हमारे-ही-जैसी मन्दभागिनी हैं l वे भी प्रेम के कारण काँपने लगती हैं l
दो-चार बार अपनी तरंग रूप भुजाओं को काँपते-काँपते उठाती तो अवश्य हैं, परन्तु फिर विवश होकर स्थिर हो जाती हैं, प्रेमावेश से स्तंभित हो जाती हैं l
।। श्री वृंदावनबिहारी लाल की जय।।
।। श्री बरसानेवारी की जय।।
।। जय जय श्री राधे।।
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राधे राधे ।