@*** ()()()()() !!!! कुसुमसरोवर !!!! ()()()()()***@
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एक दिन श्री किशोरी जी सखियों के साथ कुसुम वन में फूल चयन कर रही थीं।
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श्री श्यामसुंदर ने माली के रूप में दूर से खड़े होकर आवाज़ लगाई,'' कौन तुम फुलवा बीनन हारी ?''
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साथ की सखियां भयभीत होकर इधर-उधर भाग खड़ी हुईं।
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श्री किशोरी जी का नीलाम्बर एक झाड़ी में उलझ गया, भाग न सकीं। इस हड़बड़ाहट में एक-दो फूल भी उनके हाथ से गिर गए।
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इतने में माली का रूप छोड़ कर सामने श्री श्याम सुंदर आकर उपस्थित हुए।
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उन्होंने नीलाम्बर को झाड़ी से छुड़ा दिया।
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श्री राधा के द्वारा पृथ्वी पर गिरे फूल श्री श्यामसुंदर ने उठा लिए।
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श्री किशोरी जी ने कहा, ''प्रियतम ! पृथ्वी पर गिरे फूल पूजा के योग्य तो रहे नहीं अब क्या करोगे इनका ?''
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श्री श्यामसुंदर ने उन फूलों को सरोवर के जल से धो लिया और बोले प्राणवल्लभे ! अब ये फूल शुद्ध हो गए हैं। इतना कह कर श्री श्यामसुंदर ने वे कुसुम श्री किशोरी जी की बेनी में लगा दिए।
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श्री युगल किशोर के आनन्द की सीमा न रही।
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तभी से यह सरोवर 'कुसुमसरोवर' नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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कहते हैं श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती इस पुष्पवन मेंआकर एकान्त लीला-चिन्तन करते थे।
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प्रकट-वृन्दावन की प्रकिया भावमयी लीला के तत्त्व को न जानने वाले लोग श्री चक्रवर्ती से शास्त्रार्थ में पार न पा सकते थे।
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उनके मन में एक दिन यहां एकान्त में आकर श्री चक्रवर्ती का अनिष्ट करने की सूझी।
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चार व्यक्ति पुष्प वन में घुसे ही थे कि श्री राधा की सखियों ने प्रत्यक्ष होकर उन्हें डांटा और कहा,'' तुरन्त यहां से भाग जाओ हमारी स्वामिनी श्री राधा यहां पुष्प चयन करने को आई हुई हैं श्री श्याम सुंदर के लिए।''
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इतना सुनते ही चारों व्यक्ति वहां से भाग खड़े हुए। उनके मन में पूर्ण विश्वास हो गया कि श्री गोविन्द लीलामृत में जो लीलाएं वर्णित हैं, वे अक्षरशः सत्य हैं।
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अपनी कुचेष्टा की निन्दा करते हुए लज्जित हो गए।
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उन्हें श्री किशोरी जी की सखियों के दर्शन एवं वचनामृत पान का सौभाग्य तो प्राप्त हो गया। उनका अंतः करण शुद्ध हो गया एवं प्रकट-वृन्दावन की लीला का सार जान गए कि यहां प्रकीया-भावमयी लीला है।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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राधे राधे ।