★ गीता मे भगवान ने कहा की "तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर् युद्ध च"
भगवान कहते है की मन मुझमे लगाकर रखो ओर ईन्द्रियो से चाहे संसार मे व्यवहार करो लेकिन मन मुझमे लगा रहे-- किंतु मनुष्य मन तो संसार मे लगाकर रखता है,,ओर ईन्द्रियो से भगवान की पुजा अर्चना करता है -- वाणी से तो कहता है की हे प्रभु आप ही मेरे सब कुछ हो लेकिन मन से संसारिक रिश्तो मे अपनापन बनाये हुए है--पुज्य गुरुदेव कहा करते है की एसी दोहरी ओर छल कपट युक्त बाते भगवान पसंद नही करते-- भगवान गीता मे कहते है की - " मन्मना भव"-- अर्थात् मुझमे मन को लगाओ-- क्योकि "मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्ष्यो:-- मन ही बंधन मोक्ष का कारण है ईसलिए मन से की जाने वाली भक्ति ही भगवान को स्वीकार होती है--मानस मे कहा गया की ' नर तन पाई विषय मन देहिं,,पलटि सुधा ते सठ विष लेहिं''- अर्थात् अगर नर तन पाकर विषयो मे मन लगा दिया यानि अगर संसार मे मन लगा दिया तो विष रुपि अशांति,दुख ही मिलेगा--ईसलिए मन पर विशेष ध्यान देना है-- अनन्य भाव से भजन करने वाला ही भगवान को प्रिय है-- अनन्य यानि मन का लगाव केवल भगवान मे रहे-- बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय-
सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...
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राधे राधे ।