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*राधा-प्रेम*


🌺🌺*राधा-प्रेम*🌺🌺
🌷एक बार श्याम सुंदर निकुंज में लहराते हुए मुरली हाथ लिए क़दमब की डालो पर झूला झूलते, अपने सारे वस्त्रों और केश को छिनभिन कर भानूनंदिनी के पास आए ।
🌷जैसे ही श्यामसुंदर आए, स्वामिनी आधीर हो गयी मिलने के लिए परंतु तभी स्वामिनी ने श्यामसुंदर के केश छिनभिन देखे और उनके शिष पर कुंकुम पराग लगा देखा । 
🌷स्वामिनी भौए चढ़ाय बोली :- " कहाँ से आए हो महाराज" कुंकुम सौरभ किस गोपी का सर पे सजाया आज" 
🌷श्याम सुंदर डर जाते है ,
फिर श्याम सुंदर मुस्कुरा के कहते है " रानी आप को स्वयं याद नहीं है आज सेवा कुंज में हमने आपके चरण की जब सेवा की थीं तब आपके चरण हमने अपने माथे पर रख लिए थे तब आपके चरण का कुंकुम सौरभ हमारे माथे पर लग गया था ।
🌷स्वामिनी मुस्कुरा पड़ी,
ऐसा श्री राधा भाव में होता है " स्वामिनी श्री कृष्ण भाव में इतनी तलींन रहती है के उनको एक पल पहले अपने द्वारा हुई स्वयम् की माला श्री कृष्ण को उन्हें भ्रम में डाल देती है ।
🌷यह है श्री राधा प्रेम ... एक एक पल में कृष्ण प्रेम श्री राधा ज़ू के चित में बढता ही रहता है।
🌷श्री राधा ज़ू का कृष्ण प्रेम मादनख्या महाभाव है , अत्यंत ऊच्चतम प्रेम । ब्रज के कण कण का एक ही लक्ष्य है,
" *श्री कृष्ण को सुख प्रदान करना*" 
🌷श्री कृष्ण केवल प्रेम से ही सुखी होते है, प्रेम ही उनके सुख का कारण है। तब जिसमें जितना प्रेम होगा वो कृष्ण को उतना ही सुखी करेगा ।
🌷 ब्रज की लता, पता, फूल, पशु ,पक्षी ,सब कृष्ण को प्रेम देते है और उन्हें सुखी करते है परंतु किसी में इतना प्रेम नहीं 
जो ब्रज गोपी में हो.. 
🌷ब्रज गोपियाँ श्री कृष्ण को अत्यंत प्रेम करती है, उन्हें अत्यंत सुख देती है , गोपी जैसा प्रेम कहीं नहीं है तभी कृष्ण गोपी के ऋणी रहते है ।
🌷ब्रज की कोई भी गोपी हो सब कृष्ण को ऊँचकोटि का प्रेम प्रदान कर सुखी करती है। 
🌷श्री राधा सब गोपियों में प्रधान है तब सबसे अधिक प्रेम राधा के पास है जो किसी गोपी के पास नहीं है ... 
🌷इसका अर्थ श्री राधा ही कृष्ण को सबसे अधिक सुख देती है।जितना प्रेम अधिक, उतना कृष्ण अधिक सुखी।
राधा प्रेम अत्यंत उच्चतम स्तर का है तभी कृष्ण राधा से अत्यंत सुखी रहते है और राधा उनका प्राण और अभिन्न अंग है ।
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श्री राधा रानी की जय हो। 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

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