







फिर श्याम सुंदर मुस्कुरा के कहते है " रानी आप को स्वयं याद नहीं है आज सेवा कुंज में हमने आपके चरण की जब सेवा की थीं तब आपके चरण हमने अपने माथे पर रख लिए थे तब आपके चरण का कुंकुम सौरभ हमारे माथे पर लग गया था ।

ऐसा श्री राधा भाव में होता है " स्वामिनी श्री कृष्ण भाव में इतनी तलींन रहती है के उनको एक पल पहले अपने द्वारा हुई स्वयम् की माला श्री कृष्ण को उन्हें भ्रम में डाल देती है ।


" *श्री कृष्ण को सुख प्रदान करना*"


जो ब्रज गोपी में हो..




राधा प्रेम अत्यंत उच्चतम स्तर का है तभी कृष्ण राधा से अत्यंत सुखी रहते है और राधा उनका प्राण और अभिन्न अंग है ।








श्री राधा रानी की जय हो।
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राधे राधे ।