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वैष्णव

समस्त विश्व का उपकार करने में ही जो निरन्तर कुशलता का परिचय देते हैं, दूसरों की भलाई को अपनी ही भलाई मानते हैं, शत्रु का भी पराभव (हारा हुआ) देखकर उनके प्रति दया से द्रवीभूत हो जाते हैं तथा जिनके चित्तमें सबका कल्याण बसा रहता है, वे ही वैष्णव के नाम से प्रसिद्द हैं ! जिनकी पत्थर, परधन, और मिटटी के ढेले में, परायी स्त्री और कूटशाल्मकी नामक नरक में, मित्र, शत्रु, भाई, तथा बन्धुवर्ग में सामान बुद्धि है, वे ही निश्रितरुप से वैष्णव के नाम से प्रसिद्द हैं ! जो दूसरों की गुणराशी से प्रसन्न होते हैं और पराये दोष को ढंकने का प्रयत्न करते हैं, परिणाम में सबको सुख देते हैं, भगवान् में सदा मन लगाए रहते हैं तथा प्रिय वचन बोलते हैं, वे ही वैष्णव के नाम से प्रसिद्द हैं ! जो भगवान् श्री कृष्ण के पापहारी शुभ नाम सम्बन्धी मधुर पदों का जाप करते और जय जय की घोषणा के साथ भगवन्नामोंका कीर्तन करते हैं, वे अकिंचन महात्मा वैष्णव के रूप में प्रसिद्द हैं ! जिनका चित्त श्रीहरी श्रीचरणार्विन्दों में निरंतर लगा रहता है, जो प्रेमाधिक्यके कारण जड़बुद्धि-सदृश बने रहते हैं, सुख और दुःख दोनों ही जिनके लिए समान हैं, जो भगवान् की पूजा में दक्ष हैं तथा अपने मन और विनययुक्त वाणी को भगवान् के सेवा में समर्पित कर चुके हैं, वे ही वैष्णव के नाम से प्रसिद्द हैं ! मद और अभिमान के गल जाने के कारण जिनका अन्तःकरण अत्यन्त शुद्ध हो गया है अहंकार समूल नाशसे जो परम शांत-क्षोभरहित हो गए हैं तथा देवताओं के विश्वसनीय बंधू भगवान् श्रीनृसिंहजी की आराधना करके जो शोकरहित हो गए हैं, ऐसे वैष्णव निश्चय ही उच्च पद को प्राप्त होते हैं

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