जै जै श्यामा जै जै श्याम । जै जै श्री वृन्दावन धाम ।।
जिनका प्राकट्य जीवन में साक्षात् ब्रह्मानन्द प्रकट कर देता है , जिनका दिव्य दर्शन अनन्तानन्त जन्मों की तृषा-निवृत्ति कर देता है , जिनके नाम-रूप-लीला-धाम अथवा परिकर आदि का आश्रय मात्र उनका सहज-प्रत्यक्ष अनुभव व साक्षात् दर्शन हेतु सद्गुरु कृपा से सुपात्र बना देता है उन प्यारे प्रभु भगवान् श्री कृष्ण का प्राकट्य श्री धाम वृन्दावन में होता है ।
हमारे जै जै मथुरा से नहीं आये अपितु गोकुल में ही प्रकट भए और आज भी - वृन्दावनम् परित्यज्य , पादमेकं न गच्छति (श्री धाम वृन्दावन को त्याग एक पग भी कभी कहीं नहीं जाते । ) ध्यान देओ प्यारो !!! ब्रज के कण-कण में भगवान् हैं - यह बात ठीक नहीं , अनुचित है । वरन् सत्य तो यह है कि कण-कण ही प्यारे प्राणाधार प्रिया-प्रियतम का रूप है । यह श्री धाम वृन्दावन प्रत्यक्ष श्री अलबेली सरकार श्री स्वामिनी जू की कृपा-कटाक्ष मात्र से स्वयं के दर्शनमात्र में न केवल प्यारे जै जै अपितु प्यारे जै जै की सम्पूर्ण लीलाओं का प्रत्यक्ष दर्शन करवाने की सहज सामर्थ्य रखता है । यह प्रकट धाम है । गोकुल में तो लाला कौ अवतार भयौ किन्तु श्री धाम वृन्दावन तो भैया !!! --
श्री धाम वृन्दावन के इस कलिकाल में मुख्य प्राकट्यकर्ता तो रसिक सम्राट नित्य-निभृत-निकुञ्ज लीलाओं का प्रत्यक्ष रसपान करने वाले , हितस्वरूप-हितकर्ता-हिताचार्य , प्यारे प्रिया-प्रियतम की प्रत्येक लीलाओं की साक्षी वंशी ही श्री श्री हित हरिवंश महाप्रभु के रूप में समस्त जीवों के हितार्थ प्रकट भई ।। वे ही श्री महाप्रभु जी कहते हैं -
चन्द्र मिटै दिनकर मिटै , मिटै त्रिगुण विस्तार ।
पै दृढ व्रत श्री हरिवंश कौ , मिटै न नित्य बिहार ।।
जहाँ आज भी प्यारे प्राणाधार युगल सरकार का नित्य , प्रत्येक क्षण पदार्पण होता है , नित्य नवीन लीलाओं का प्राकट्यकर्ता , जो धाम सदा चिन्मय है , दिव्यातिदिव्य है , जिस श्री धाम वृन्दावन का प्रत्येक कण प्रिया-प्रियतम के साक्षात् दर्शन करवाने की सामर्थ्य रखता हो , जहाँ श्री जमुना महारानी की निर्मल श्यामवर्ण की अद्भुत्तम प्रेममयी रसधारा कलकल ध्वनि (जिसमें श्री राधा , श्री राधा नाम प्रकट हो - ऐसी ध्वनि) प्रकट करने वाली हमारी जमुना मैया होय , जहाँ आज भी सन्त-रसिक व प्रेमीजनों के इस भाव का जीवन्त दर्शन हो -
नाम महाधन है अपनौ , नहीं दूसरी सम्पति और कमानी ।
छोड़ अटारी अटा जग के , हमकूं कुटिया ब्रज माँहि बनानी ।।
टूक मिलें ब्रजवासिन के , और सेवें सदा जमुना रसरानी ।
औरन की परवाह नहीं , अपनी ठकुरानी श्री राधिका रानी ।।
ऐसे-ऐसे व प्यारे प्यारे भावों के रससागर में सदा निमग्न रहने वाले जै जै के प्यारे जहाँ निवास करते हों , जिसकी जीवन-सार-सर्वस्व प्राणाधिका-प्रियतमा नित्य-निकुंजेश्वरी , रस-रासेश्वरी प्यारी अलबेली सरकार श्री प्रिया जू स्वयं हों , जिसके आश्रय से आज दास जीवित है - ऐसा दिव्यतम-अद्भुत्तम प्रेम-रस-आनन्द-केलि-भाव आदि-आदि अनन्त भावों का अगाध-अबाध महासागर श्री धाम वृन्दावन है ।। ऐसे प्रेमधाम को हम सभी प्रेम से नमन करते हैं ।
प्यारो !! विश्व के मन्दिरों में पूजा होती है , ब्रज में सेवा होती है । सर्वत्र पुजारी , ब्रज में सेवक । ऐसौ अनोखौ ब्रज - जहाँ कौ ठाकुर (प्यारे जै जै ) गारी ते हू प्रसन्न है कै दर्शन दै देय । जहाँ धूरि (ब्रजरज) ते ऊ प्यारे श्याम सुन्दर कौ सहज श्रृंगार है जावै । जहाँ आज हू प्रेमी रसिकन के द्वारा प्रेम की वू मीठी ब्रजभाषा बोली जावै जाकौ प्रारम्भ स्वयं लाला कन्हैया ने कीन्हौ हौ । जाकी स्वामिनी जू , ठकुरानी , रखवारी , सर्वेसर्वा श्री प्रिया जू (श्री राधारानी ) सेवाकुँज वारी हैं । जहाँ आदर ई अनादर , अनादर ई आदर हतै , जहाँ अधर्म हू धर्म और धर्म हू अधर्म बन जावै , जहाँ - धन्यं वृन्दावनं तेन , भक्तिर्नृत्यति यत्र च ।। जो आज अपने प्रत्येक कण ते - श्री राधा - श्री राधा - श्री राधा - श्री राधा - ऐसी प्रेममयी पुकार लगावै । जाके आश्रय मात्र ते जे अहंकार उत्पन्न है जावै -
हम श्री किशोरी जू के बल अभिमानी ।
टेढ़े रहत सदा मोहन सों , बोलत अटपटी वानी ।।
हम श्री किशोरी जू के बल अभिमानी ।।
लाला-लाली (प्यारे प्रिया-प्रियतम) के नित्य बिहारस्थल कूँ कोटि कोटि सर्वप्रकारेण प्रणिपात ।।
अरे ओ प्यारे श्री धाम वृन्दावन !! हमकूँ विसारियो मति प्यारे । अधम हैं , अभागे हैं , संसार के योग्य तौ बन ना पाये , वेद- शास्त्रन कूँ समझवे वारी बुद्धि हू नाय - जीवन में आचरण तौ भौत दूर हतै । साधन-साधना-तपस्या-यज्ञ--योग-सन्ध्या-गायत्री-दान-सेवा-भाव-भक्ति-प्रेम-जप-तप-नियम-विधि-निषेध आदि आदि सबन ते रहित हतूँ - तू जानै सब । देख भैया ! तो तक तो हमारी गति हतै नाय । कुकर्मन्नै लै जायकै विदेश में पटक दीन्हों है । जीवन कौ तौ विश्वास हतै जामैं तेरी याद आय जावै किन्तु जा दारी मृत्यु कौ कहा विश्वास प्यारे ? पतौ नाय मरी कब आ जाय ? यदि आ हू गई तोऊ कम ते कम तेरौ स्मरण तौ है जाय । तेरी भौत भौत याद आवै प्यारे ! अरे श्री धाम वृन्दावन !! हम जानें या बात कूँ - कि जब चतुर्भुजी वसुदेवनन्दन वासुदेव भगवान् श्री कृष्ण कौ , चार भुजान वारे द्वारिकाधीश कौ प्रवेश तोमें कबहुँ नाय है पायौ ... तौ हम जैसेन की कहा औकात है ?? हम जानें - जब तक किशोरी कृपा नाय करैगी तब तू सारे हमें नाय बसावैगौ ।
अरे ओ संसारियो !!!! बुद्धि के बल जीने वालो ! अरे ओ व्यवहारकुशल पढ़े-लिखे प्राणियों ! बड़े बड़े ज्ञानियों ! निःशुल्क सुझाव दैवे वारेओ !!! ओ फेकबुकिया विद्वानों ! ! आज स्पष्ट कान खोल कै सुन लेओ । जब तक श्री लाडिली स्वामिनी जू की कृपा-कटाक्ष मात्र ते स्वयं यह श्री धाम वृन्दावन करुणा नाय बरसावैगौ तब तक श्री धाम में प्रवेश असम्भव हतै ।। और कोऊ पहुँच हू गयौ तौ दारी कौ म्हाऊँ जायकै संसार-परिवार-व्यवहार में फंसौ रहैगौ वाकूँ गन्दगी दीखैगी , अव्यवस्था दीखैगी , लूट-कपट-चोरी-बदमाशी-बलात्कार-दुष्टता-नीचता मिलैगी । चोर - ठग और उल्लू बनावे बारे मिल जावेंगे । किन्तु जैसौ धाम का वास्तविक स्वरूप है वू प्यारे श्री राधावल्लभ लाल जू महाराज कौ दर्शन दुर्लभ रेहैगौ ( श्री धाम में सब जानें - श्री राधावल्लभ - दर्शन दुर्लभ ) । चाहे तुम फ़्लैट लेओ , भूमि , घर , महल , दुकान आदि कछु ले लेओ । कितने हु वर्ष निवास कर लेओ । अथवा बाहर ते आय आयकै0 प्यारे ब्रज के ठाकुर श्री बाँकेबिहारी लाल कौ दिखावे कौ दर्शन करवे जाओ (क्यों कि भौतेरे गमार तौ केवल दही की लस्सी और भल्ला खावे कूँ आवैं और याई चक्कर में जै जै कूँ भूल जावैं ) । पर सारेओ ! याद राखो । जेऊ बड़ौ टेढ्यौ है । जा ते अधिक टेढ्यौ ढूंढें ते ऊ नाय मिलैगौ ।।
कदा वृन्दारण्ये , विमल यमुनातीर पुलिने .... ??
तो भैया प्यारे ! कुल मिलाय कै अब एकई बात रह गई -
किशोरी !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! देख लियो प्यारी !!!
जै जै श्यामा जै जै श्याम । जै जै श्री वृन्दावन धाम ।।
बालशूक श्री गोपेश जी
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राधे राधे ।