युगल विनोद
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श्री जू एक वृक्ष के नीचे बैठ श्याम सुंदर की प्रतीक्षा में हैँ |कभी अपनी कंकण ध्वनि से मोहन मोहन ध्वनि सुन रहीं कभी अपनी पायल खनका रही हैं। प्रियतम संग हों तो भी उनकी प्रतीक्षा में बैठ जाती हैं । प्रेम की अद्भुत स्थिति हो जाती है। श्यामसुन्दर प्यारी जू को देख देख आनंदित हो रहे कि राधा अपने आभूषणों की ध्वनि में मोहन मोहन सुन आनंद ले रही हैं । श्यामसुन्दर प्यारी जू को वहीं खड़े होकर निहारने लगते हैं । तभी एक सखी वहां पहुंचती है । श्यामसुन्दर को विनोद सूझने लगता है । उस सखी को कहते हैं कि राधा को कहना उनको अपने आभूषणों से समय मिले तो मिलने आ जाएँ और वहां से दूर दूसरे वृक्ष के नीचे बैठ जाते हैं ।
सखी प्यारी जू को कहने लगती प्यारी जू ! श्यामसुन्दर अभी आए थे और आपको आभूषणों से खेलते देख रूठ गए हैं। श्यामा जू जानती हैं कि श्यामसुन्दर तो उनसे रूठ ही नहीं सकते अवशय ही इस सखी से विनोद करना चाहते हैँ । जैसे प्रियतम का मन हो वैसे ही भाव श्यामा जू के हृदय में प्रकट हो जाते हैं।
श्री जू अपना सन्देश दे उस किंकरी को श्यामसुन्दर के पास भेजती हैँ । उधर से श्यामसुन्दर अपना सन्देश दें प्यारी जू के पास भेजते हैँ । युगल कुछ दूरी पर स्थित वृक्षों के नीचे अलग अलग बैठे । दोनों एक दूसरे को पुनः पुनः निहार रहे और मीठे मीठे उलाहने लेकर ये सखी कभी श्यामसुन्दर तो कभी श्यामा जू की और लौट जातीं। ये मन में सोच रही है कि युगल का मिल्न कैसे हो और युगल एक दूसरे को निहारते निहारते इससे विनोद कर रहे । ओह ! कितना समय हो गया दोनों ही रूठ गए हैं अब इनका मिल्न कैसे हो ? सखी का मन पीड़ित होने लगता और आँखों से अश्रु प्रवाह होने लगते। उधर युगल अपने इस विनोद से और उस सखी के भावों से आनंदित हो रहे । तब प्यारी जू उसका आलिंगन करती हैँ वो उसका हाथ पकड़ श्यामसुन्दर के पास ले जाती हैं । युगल को आनन्दित देख ये भी आनंद की लहरों में बहने लगती है ।
जय जय श्री राधे
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राधे राधे ।