सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

(((((((((((( आडंबर ))))))))))))

((((((((((((  आडंबर  ))))))))))))
.
कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी.
.
मौत आंखों में लिए वह फरियाद करने लगी— ‘महाराज ! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं. आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें.
.
मैं जब तक जियूंगी, अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी.
.
बकरी की करुण पुकार का संन्यासी पर कोई असर न पड़ा. वह निर्लिप्त भाव से बोला— ‘मूर्ख, बकरी क्या तू नहीं जानती कि मैं एक संन्यासी हूं.
.
जीवन-मृत्यु, हर्ष-शोक, मोह-माया से परे. हर प्राणी को एक न एक दिन तो मरना ही है.
.
समझ ले कि तेरी मौत इस कसाई के हाथों लिखी है.
.
यदि यह पाप करेगा तो ईश्वर इसे भी दंडित करेगा…
.
‘मेरे बिना मेरे मेमने जीते-जी मर जाएंगे बकरी रोने लगी.
.
नादान, रोने से अच्छा है कि तू परमात्मा का नाम ले. याद रख, मृत्यु नए जीवन का द्वार है.
.
सांसारिक रिश्ते-नाते प्राणी के मोह का परिणाम हैं, मोह माया से उपजता है. माया विकारों की जननी है.विकार आत्मा को भरमाए रखते हैं…
.
बकरी निराश हो गई.
.
संन्यासी के पीछे आ रहे कुत्ते से रहा न गया, उसने पूछा—‘महाराज, क्या आप मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं ?
.
‘बिलकुल, भरा-पूरा परिवार था मेरा सुंदर.पत्नी, भाई-बहन, माता-पिता, चाचा-ताऊ, बेटा-बेटी.
.
बेशुमार जमीन-जायदाद… मैं एक ही झटके में सब कुछ छोड़कर परमात्मा की शरण में चला आ आया.
.
सांसारिक प्रलोभनों से बहुत ऊपर… जैसे कीचड़ में कमल…’ संन्यासी डींग मारने लगा.
.
आप चाहें तो बकरी की प्राणरक्षा कर सकते हैं. कसाई आपकी बात नहीं टालेगा.’
.
‘मौत तो निश्चित ही है, आज नहीं तो कल, हर प्राणी को मरना है.’
.
तभी सामने एक काला भुजंग नाग फन फैलाए दिखाई पड़ा.
.
संन्यासी के पसीने छूटने लगे. उसने कुत्ते की ओर मदद के लिए देखा. कुत्ते की हंसी छूट गई.
.
‘मृत्यु नए जीवन का द्वार है…उसको एक न एक दिन तो आना ही है…’ कुत्ते ने संन्यासी के वचन दोहरा दिए.
.
‘मुझे बचाओ.’ अपना ही उपदेश भूलकर संन्यासी गिड़गिड़ाने लगा. मगर कुत्ते ने उसकी ओर ध्यान न दिया.
.
‘आप अभी यमराज से बातें करें. जीना तो बकरी चाहती है. इससे पहले कि कसाई उसको लेकर दूर निकल जाए, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना है…’
.
कहते हुए वह छलांग लगाकर नाग के दूसरी ओर पहुंच गया.
.
फिर दौड़ते हुए कसाई के पास पहुंचा और उसपर टूट पड़ा.
.
आकस्मिक हमले से कसाई के औसान बिगड़ गए. वह इधर-उधर भागने लगा.
.
बकरी की पकड़ ढीली हुई तो वह जंगल में गायब हो गई.
.
कसाई से निपटने के बाद कुत्ते ने संन्यासी की ओर देखा. वह अभी भी ‘मौत’ के आगे कांप रहा था.
.
कुत्ते का मन हुआ कि संन्यासी को उसके हाल पर छोड़कर आगे बढ़ जाए.
.
लेकिन मन नहीं माना. वह दौड़कर विषधर के पीछे पहुंचा और पूंछ पकड़ कर झाड़ियों की ओर उछाल दिया,
.
बोला— ‘महाराज, जहां तक मैं समझता हूं, मौत से वही ज्यादा डरते हैं, जो केवल अपने लिए जीते हैं.
.
धार्मिक प्रवचन उन्हें उनके पापबोध से कुछ पल के लिए बचा ले जाते हैं…जीने के लिए संघर्ष अपरिहार्य है, संघर्ष के लिए विवेक,
.
लेकिन मन में यदि करुणा-ममता न हों तो ये दोनों भी आडंबर बन जाते हैं.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
  (((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे ..... चौपाई : काल क...