राधा जू का कृष्ण रूप में श्रृंगार
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जब श्री जू श्यामसुंदर को अपने आभूषण पहने देखती हैं तो अत्यंत प्रसन्न हो उठती हैं । उनके मन में ये विलक्षण आनंद है कि प्रियतम इन आभूषणों से सुख पा रहे हैं । उनके मन में श्यामसुन्दर जैसा श्रृंगार करने की लालसा हो जाती है।
श्री जू सबसे पहले श्यामसुन्दर की वैजयंती माला धारण करती हैं । फिर उनकी बांसुरी उठा लेती हैँ । मोर पिच्छ शीश पर धारण करती और मन्द मन्द मुस्कुराती हैं । जब प्यारी जू पीताम्बर ओढ़ती हैं और बांसुरी को देखती हैं तो स्वयम् को कृष्ण मान बैठती हैं ।
त्रिभंगी मुद्रा में खड़ी हो बांसुरी बजाना शुरू कर देती हैँ। आहा हर और उन्माद होने लगता । आज ये बांसुरी की ध्वनि तो अत्यधिक उन्माद दे रही सबको।
कुछ क्षण बाद एकदम बाहर की और दौड़ पड़ती हैं । सखियाँ सहसा दौड़ते देख पीछे भागती हैं । श्री जू कहने लगती हैं राधा राधा राधा ....। राधा कहाँ है अब तक नहीं आई। मुझसे मिले बिना वो कितनी व्याकुल होंगी। हाय !राधा मैं तुमको ढूंढ नहीं पा रहा । तुम कहाँ हो राधा । प्रत्येक सखी से राधा का पता पूछने लगती । अत्यंत व्याकुल हो जाती हैं। सहसा श्यामसुन्दर उनके सामने आ जाते। उनसे भी राधा का पता पूछने लगती । श्यामसुन्दर अपनी प्यारी जू की इस भाव दशा से अत्यंत प्रसन्न होते हैँ । उनको स्पर्श कर कहते तुम ही तो हो मेरी राधा और उनका आलिंगन करते । श्यामसुन्दर के आलिंगन में भी वो राधा राधा ही पुकार रहीं । भीतर यही दशा की प्रियतम को राधा नाम अति प्रिय है । स्वयम् मोहन बन राधा राधा नाम सुना प्रियतम को आनन्दित कर रहीं । इस अद्भुत प्रेम की जय हो। जय जय श्री राधे =======================
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राधे राधे ।