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श्री जू का विलक्षण श्रृंगार

श्री जू का विलक्षण श्रृंगार
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श्री जू यमुना जल में हैं। उनके केश कुण्डल बन बिखर रहे। काली घुंगराली लटें जल में तैरने लगीं । श्री जू उनके साथ खेलने लगती हैँ उन्मादिनी सी हैँ ।उनको लटों में भी श्यामसुन्दर की प्रतीति हो रही है ।

    कुछ समय बाद जल से बाहर आती हैं । उनकी दृष्टि अपनी पायल पर पड़ती है। पायल के घुंघरू खनकाने लगती हैं।घुंघरू की आवाज़ सुन सुन प्रसन्न हो रही । ये ध्वनि मेरे प्रियतम को प्रिय है।वही ये पायल पहनाए मुझे। अपनी पायल कभी अलग नहीं होने देती। अभी कंगनों की ध्वनि से मन्त्र मुग्ध हो रही। उनको खनकाती है। जैसे सब ऊपर से नीचे फिर नीचे से ऊपर।उसकी आवाज़ में उसको मोहन मोहन मोहन मोहन ही प्रतिध्वनित हो रहा। पुनः पुनः ऊपर नीचे कर सुनती है। हर चेष्ठा उन्मादिनी सी ।दर्पण देख रही तो उसमें मोहन दिखाई पड़ते । आनन्दित हुई जा रही। सखी पूछती क्या हुआ ? बोली देखो देखो मोहन । सखी दर्पण देखती तो श्री जू दिखाई पड़ती और श्री जू को मोहन । सखी जो भी वस्त्र ला रही आज लौटाय जा रही   । आज कान्हा जू जिस रंग के वस्त्र पहनें इन्हें भी वही रंग धारण करना है ।सखी काजल लगाने लगती तो उसी को मोहन समझ बैठी है।

       सखी के मुख से मोहन नाम सुन हर और मोहन मोहन ही प्रत्यक्ष हो रहे जैसे। सखी कोई राग छेड़ देती है तो प्रिया जू घूम घूम नाचना शुरू कर देती है।

सखी री मेरो प्रियतम ही चहुँ ओर
सखी दीख रह्यो मोहे नन्द किशोर

देख सखी बोल रहे क्या कंगन
   मोहन मोहन मोहन मोहन
सुन सुन हो रही भाव विभोर
सखी री मेरो प्रियतम ही चहुँ ओर
सखी दीख रह्यो मोहे नन्द किशोर

  पायलिया खनकाती है प्यारी
प्रियतम याद रहे स्वयम् बिसारी
खन खन में सुने मोहन चितचोर
सखी री मेरो प्रियतम ही चहुँ ओर
सखी दीख रह्यो मोहे नन्द किशोर

मैं तो मोहन रंग रंगूँगी ऐसो मोहे सजाओ सखी री
वो मोहन मैं मोहिनी उनकी मोहन जैसी बनाओ सखी री
मदमाती है और नाचती देखे प्रियतम मचावे शोर
सखी री मेरो प्रियतम ही चहुँ ओर
सखी दीख रह्यो मोहे नन्द किशोर

सखी अखियों में काजल धराए
श्यामा सखी में प्रियतम ही पावे
   मुस्कावे अखियों की कोर
सखी री मेरो प्रियतम ही चहुँ ओर
सखी दीख रह्यो मोहे नन्द किशोर

हर और प्रियतम ही प्रियतम । ऐसा अद्भुत है ये प्रेम जिसको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। जय जय श्री राधे

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