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(मानसी सेवा की दिव्य घटनाएं)

(मानसी सेवा की दिव्य घटनाएं)
★ भगवान का स्मरण यानि स्मरण भक्ति की बहूत महिमा है-- स्मरण भक्ति मे प्रभु का ध्यान करने से एक दिन एसी स्थिति आ जाती है की अगर भाव मे प्रभु के साथ लीला करते हूए या मानसिक रुप से भोग लगाते हूए कोई वस्तु प्रभु को दी जाए तो प्रभु उस वस्तु को स्वीकार कर लेते है- ब्रज के बहुत सारे संतो के जीवन की घटनाएं है जो प्रभु की मानसी सेवा किया करते थे ओर उनका भाव ईतना उच्च कोटि का हो गया था की साक्षात् भगवान उनके द्वारा दी गयी वस्तु स्वीकार करते थे-- चार प्रसंगो के द्वारा ईस बात को समझते है--
पहला प्रसंग ये है की एक बार एक संत राधा रानी की मानसी सेवा कर रहे थे तो राधा रानी ने साक्षात् उस मानसी सेवा मे उस संत को एक ताम्बुल दे दिया-- ओर मानसी सेवा मे उस ताम्बुल को उस संत ने खा लिया-- थोडी देर बाद उस संत को खांसी हूई तो तम्बुल के बहुत सारे कण बाहर निकल आऐ-- उनके शिष्यो ने ये सब देखा तो उन्होने उनसे पुछा की महाराज श्री आप तो कभी ताम्बुल खाते ही नही तो ये ताम्बुल के ईतने सारे कण कहां से आये??--उन संत ने कहा की बेटा, ये सब मानसी सेवा का परिणाम है की राधा रानी ने साक्षात् मुझे मानसी सेवा मे ताम्बुल दे दिया-- दूसरा प्रसंग ये है की एक बार एक राजा था ओर वो घोडे मे सवार होकर जा रहा था-- राजा ने सोचा की चलो मै थोडी देर मानसी सेवा कर लेता हूं-- राजा ने मानसी सेवा मे ध्यान करना शुरु कर दिया ओर प्रभु को राजभोग लगाने के लिए मानसिक रुप से कढी बनाई -- उस कढी को जैसे ही राजा थाल मे लेकर ,भगवान को भोग लगाने जा रहा था तो उसी समय घोडा उछलने लगा-- राजा की मानसी सेवा मे विक्षोभ होने से राजा की कढी भी फैल गयी ओर जब राजा ने सचमुच आंख खोलकर देखा तो वो कढी सचमुच ही घोडे पर ओर धरती पर गिरी हूई मिली-- तीसरा प्रसंग ये है की गोवर्धन मे दो मित्र महात्मा रहते थे- ओर दोनो भगवान की मानसी सेवा किया करते थे-- एक बार सर्दियो के समय दोनो महात्माओ ने ठाकुर जी को स्नान कराया- एक महात्मा ने गर्म पानी से स्नान कराया ओर दुसरे महात्मा ने ठंडे पानी से स्नान कराया-- तो मानसी सेवा मे ही भगवान उस गर्म पानी से स्नान कराने वाले महात्मा से बोले की अब हम स्नान नही करेंगे-- महात्मा ने पुछा की-- क्यो स्नान नही करोगे??-
तो ठाकुर जी ने कहा की हमे बुखार हो गया क्योकि तुम गर्म पानी से स्नान कराते हो ओर तुम्हारा मित्र ठंडे पानी से स्नान कराता है तो हमे बुखार हो गया-- ठाकुर जी की बात सुनकर वो महात्मा प्रेम मे रोने लगे ओर अपने मित्र से जाकर कहा की ठाकुर जी अब स्नान नही करेंगे क्योकि आपने उनको ठंडे पानी से स्नान करा दिया--
भगवान कितने दयालु है की अगर भगवान की भगवत्ता को देखा जाए तो भगवान को सर्दी गर्मी नही लगती लेकिन भगवान भक्त की निष्काम सेवा मे ईतने बंध जाते है की भावना के अनुसार हर प्रकार की लीला करते है--
चौथा प्रसंग स्वामी श्री हरिदास जी महाराज का है-- एक बार यमुना किनारे बैठकर स्वामी जी ध्यान मे लीला का आनंद ले रहे थे की प्रिया प्रियतम आपस मे होली खेल रहे है-- ओर प्रिया जी पिचकारी मे रंग भरकर ठाकुर जी पर डाल रही है-- उसी समय एक भक्त स्वामी जी के पास आया ओर उस भक्त ने स्वामी जी को ईत्र प्रदान किया--उसी समय हरिदास जी महाराज ने भाव मे उस लीला को देखा की राधा रानी की कमोरी मे रंग खत्म हो गया-- तो उसी समय हरिदास जी महाराज ने उस व्यक्ति द्वारा दिये गये ईत्र को यमुना मे डाल दिया-- हरिदास जी ने भाव मे वो ईत्र प्रिया जी की कमोरी मे डाला था लेकिन उस भक्त को लगा की स्वामी जी ने सारा ईत्र खराब कर दिया ओर यमुना जी मे डाल दिया--
स्वामी जी उसके मन की बात समझ गये ओर बोले की अरे भक्त आप जरा बिहारी जी का दर्शन करके आओ--तो जैसे ही वो भक्त बिहारी जी का दर्शन करने अंदर गया तो उसने देखा की जो ईत्र यमुना मे डाला गया था उसी ईत्र की सुगंध पुरे मंदिर मे फैल रही है ओर बिहारी जी के श्रीअंग मे वो सारा ईत्र बह रहा है-- क्योकि वो ईत्र प्रिया जी ने प्रियतम पर डाल दिया था ओर ये सब हरिदास जी की भावमयी लीला थी--
तो ईन सब चार प्रसंगो से सीखने को मिलता है की ध्यान यानि मानसी सेवा की बहुत महिमा है-- बिना ध्यान के मानसी सेवा नही हो सकती ईसलिए मानसी सेवा जरुर करनी चाहिये-- कपिल भगवान भी मां देवहूति से कहते है की भगवान के सुंदर रुप का ध्यान करने से भगवान मे भाव का उदय होता है,,उसका चित्त भक्तिरस से द्रवीभुत हो उठता है,,ओर शरीर मे आनंद का रोमांच होने लगता है--
" एवं हरौ भगवति प्रतिलब्धभावो--
भक्तया द्रवद्धृदय उत्पुलक: प्रमोदात्--"-- बोलिए श्रीमद्भागवत महापुराण की जय -- सद्गुरुदेव भगवान की जय-- जय जय श्री राधे

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