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ऋषि मुनियों को कृष्ण दर्शन

ऋषि मुनियों को कृष्ण दर्शन
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एक बार कान्हा अपनी सखा मण्डली के साथ वन में खेल रहे थे। सभी सखा अपने सखा कान्हा के साथ आनन्दित थे । तभी उधर से कुछ ऋषि मुनि जा रहे थे । सखाओं को विनोद करने की सूझी । कुछ सखा उन ऋषि जन के पास गए और प्रणाम किया। उनसे पूछे आप वन वन क्यों जा रहे हो। तभी वो ऋषि बोले हमारा उद्देश्य प्रभु प्राप्ति है ,इस संसार को त्याग हम ईश्वर की खोज में निकले हैं । एक सखा ने कहा यहां वन में एक परम् सिद्ध पुरुष हैं जो आपका ईश्वर से साक्षात्कार करवा सकते हैँ। सखाओं वो विनोद की सूझ रही थी।

     सखाओं के हृदय में कान्हा के लिए शुद्ध प्रेम था । जहां प्रेम से हृदय आलोकित हो वहां ऐश्वर्य छिपा ही रहता है। यदि सखाओं को ज्ञात हो की श्री कृष्ण ही पूर्ण परब्रह्म साक्षात् श्री हरि स्वयम् नारायण हैं तो वो अपने आनंद से वंचित रह जाते। अभी उनके लिए कान्हा एक नटखट मित्र ही है जो विनोद करने को साधू का वेश धारण किये हुए है। सखा उन ऋषियों को कान्हा के सम्मुख ले आते हैं और कहते हैं यही वह परम् सिद्ध महापुरष हैं जो आपको ईश्वर का साक्षात्कार करवा सकते हैं।

        ऋषि मुनि कर बद्ध होकर श्री कृष्ण को प्रणाम करते हैं और दण्डवत करते हैं । विनोदी सखा बहुत प्रयत्न से हंसी रोक पाते हैं और श्री कृष्ण उनको हंसाने हेतु भिन्न भिन्न भाव भंगिमाएं बनाते हैँ ताकि सखाओं को आनंद हो। ये हैं ही ऐसे नटखट । ऋषियों को कहते हैं आप एक एक कर मेरे समीप आओ मैं आपके कान में उस मन्त्र को देता हूँ जिसे जपने से आपको ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त होगी। उन सबके कान में राधा नाम का उच्चारण करते हैं। सभी ऋषियों को कहते हैं अब आप राधा नाम का कीर्तन करें।

      ऋषि मुनि राधा नाम का कीर्तन शुरू कर देते हैं । श्री कृष्ण इस कीर्तन से अत्यधिक आनन्दित हो जाते हैँ । वो उठ कर नाचने लगते हैँ उनकी सब वेश भूषा खुल जाती है और साधू वेश हटने से एक नटखट बालक सबके सम्मुख होता है। सभी सखा जोर जोर से हंसते हंसते भाग जाते हैं । पर भक्त वत्सल श्री हरि तो अपने भक्तों के मन की बात जान लेते हैँ । राधा नाम के कीर्तन से अति प्रसन्न होकर उन ऋषि मुनियों को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन देते हैँ। इस प्रकार श्री कृष्ण जहां उन ऋषियों को ईश्वर नारायण श्री हरि रूप में दर्शन देते वहीं अपने सखाओं को विनोद के आनन्द में डुबो देते हैं ।  जय जय श्री राधे

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