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सत्यजीत तृषित

आज, अभी ,इसी समय हम योग्य हैं । भगवत् मिलन या भगवत् प्राप्ति को ।
स्वभाविक प्राप्त अवस्था से ही ऐसा सम्भव है ।
अगर कोई कहे बिना परिक्रमा वह नहीँ मिलते तब तो जिन्हें पैर ना मिलें उनके संग अन्याय हुआ न।
जबकि प्राप्त वस्तु , स्थिति, समय, स्थान , व्यवस्था में ही प्राप्ति होगी ।
अधिकत्तर कॉपी पेस्ट फॉर्मूला अपनाया जाता है । जो कि अनुचित है , क्योंकि आवश्यक सभी वस्तु प्राप्त है । हाँ , कर्तव्य का अभाव है और अप्राप्त की लालसा , प्राप्त साधन से कर्त्तव्य निभाएं जावे तब साधन स्वतः प्राप्त होंगे आवश्यक कर्त्तव्य हेतु ।
असमर्थता हो या भय हो , उस स्थिति में व्यर्थ चिन्ता छोड़ करने योग्य कार्य करने से समर्थता और निर्भयता स्वतः होती है ।
अब तक प्राप्त काल-वस्तु आदि का सदुपयोग ना होने से ही स्वधर्म पथ छुटता है ।
सभी साधनों का मेरा ना जान किया सदुपयोग सहज जीवन यात्रा है , साधनों से आसक्ति और संग्रह और उनके लिये मिथ्या अभिमान से दोष का स्वरूप गहरा होता है ।
अपने बल को निर्बल का बल जान लेने से , बल को निर्बल को समर्पित करने से बल में अपना अभिमान नहीँ रहता और चित्त शुद्धि होती है ।
अर्थात् प्राप्त बल और यश - श्री को जिन्हें प्राप्त नहीँ उनकी ही वस्तु जानना ।
जैसा हाथी - बैल आदि बल का सदुपयोग कर असमर्थ को समर्थता देते है ।

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