राधाष्टमी विशेष:-
प्रगट्यौ सब ब्रज कौ सिंगार!
कीरति कूँखि औतरी कन्या, सुन्दरता कौ सार!!
नख - शिख रूप कहा लौ बरनौ, कोटि मदन बलिहार!
'परमानंद' बृषभानु नन्दिनी, जोरी नन्दकुमार!!
अब रसिक जन कहते है कि
लाड़ली जू का जन्म होते ही ब्रज में वो आनन्द की लहर प्रगट हुई जिसका ब्रजनारी, ब्रजवासी, ब्रजगोप गोपी आनन्द मगन होकर मंगल गान कर रहे है.
और कीरति मैया की कूँखि को धन्य धन्य कहते हुए बाबा बृषभानु से बधाई माँगने चल दिये.
और कह रहे है-
बरसाने बृषभान गोप घर शोभा की निधि आई!
धनि- धनि कूँखि महरि कीरति की, जिन यह कन्या जाई!!
अखिल लोक भुव नागलोक में, देखी सुनी न निकाई!
सिंधु सुता गिरि सुता सची रति नही समान कोऊ पाई!!
अहा.....
मतलब सारे संसार में क्या चौदहुँ लोक में जितनी सुन्दरता है वो सुन्दरता लाड़ली जु के नख के बराबर भी नही है!
यहाँ प्रभु कल्यान रसिक जी कहते है-
जितने लोक है नाग लोक से लेकर ब्रह्म लोक, देव लोक, वैकुण्ठ लोक, किसी लोक में भी इसको समान सुन्दर कोई नही है!
अब इतनी सुन्दर लाली को देखते हुए जसोदा मैया लाला की सगाई की बात कहती है..
कि या लाली सों तो मैं लाला की संगाई करूंगी.....अहा...
ब्रज भाव.....
धन्य है...
जसोदा मैया जाकूँ यह सुख, सुत मिल्यौ...
और जसोदा मैया कहती है...
प्रभु कल्यान गिरिधर की जोरी विधना यहै बनाई....
अहा...
धन्य है विधना तू धन्य है.....
किशोरी जू का तो जन्म ही लाल जी की लीलाओं को पूर्ण करने के लिये हुआ है.....
यहाँ भी मुझे एक पद याद आ गया-
कुवँरि कृपा की द्रष्टि भई!
आज सखी मंगल में मंगल, मोद विनोद मई! ...................अब ध्यान देना
मोहन हित प्रगटी श्री श्यामा, सिद्धि निधी सबनि दई!
वंशी वंश रुप हित जानी, निज अपनाय लई!!
श्री रूप लाल जी कहते है-
कि लाड़ली जू का जन्म ही मोहन स्यामसुन्दर के हित के लिये हुआ है...
बस इसी आनन्द को लेतेे हुऐ रसिक जन कहते है
शेष महेष सुरेश न पावै, अज अजहुँ पछिताय!!
सो सुख रमा तनक नही पावत, जदपि पलोटत पाय!!
श्री बृषभानु सुता पद पंकज, जिनके सदा सहाय!!
यह रस मगन रहत है तिन पर, 'नंददास' बलि जाय!!
🌺जय जय श्री राधे 🌺
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राधे राधे ।