सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

II सीताराम II

II सीताराम II

गोस्वामी तुलसीदासजी विरचित
" जानकी मंगल "
(गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित)
पोस्ट संख्या - २२

जनु दमक दामिनि रूप रति मद निदरि सुंदरि सोहहीं ।
मुनि ढिग देखाए सखिन्ह कुँवर बिलोकी छबि मोहहीं ।।
सिय मातु हरषी निरखि सुषमा अति अलौकिक रामकी ।
हिय कहती कहँ धनु कुँअर कहैं बिपरीत गति बिधि बाम की ।।९।।

[उनके दाँत ऐसे जान पड़ते हैं] मानो बिजली चमक रही हो । वे कामिनियाँ अपने रूपसे रतिके मदका निरादर करती हुई शोभा पा रही हैं । [सखियोंने सुनयनाजीको] मुनिके समीप दोनों कुमारोंको दिखलाया । उनकी छबि देख उनका मन मोहित हो गया । श्रीरामचन्द्रजीकी अत्यन्त अलौकिक शोभाको देखजानकीजीकी माता प्रसन्न हुईं और मन-ही-मन कहने लगीं कि ‘कहाँ धनुष और कहाँ ये कुमार ? वाम विधाताकी गति बड़ी विपरीत है’ ।।९।।

कहि प्रिय बचन सखिन्ह सन रानि बिसूरति ।
कहाँ कठिन सिव धनुष कहाँ मृदु मूरति ।।७३।।
जौं बिधि लोचन अतिथि करत नहिं रामहि ।
तौ कोउ नृपहि न देत दोषु परिनामहि ।।७४।।

सखियोंसे प्रिय वचन कहकर रानी सोचने लगीं कि कहाँ शिवजीका (कठोर) धनुष और कहाँ यह सुकुमार मूर्ति ।७३। यदि विधाता श्रीरामचन्द्रजीको हमारे नेत्रोंका अतिथि न बनाता तो अंतमें राजाका कोई दोष न देता ।७४। ........ क्रमशः

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...

🌼 युगल सरकार की आरती 🌼

 आरती माधुरी                      पद संख्या २              युगल सरकार की  आरती  आरती प्रीतम , प्यारी की , कि बनवारी नथवारी की ।         दुहुँन सिर कनक - मुकुट झलकै ,                दुहुँन श्रुति कुंडल भल हलकै ,                        दुहुँन दृग प्रेम - सुधा छलकै , चसीले बैन , रसीले नैन , गँसीले सैन ,                        दुहुँन मैनन मनहारी की । दुहुँनि दृग - चितवनि पर वारी ,           दुहुँनि लट - लटकनि छवि न्यारी ,                  दुहुँनि भौं - मटकनि अति प्यारी , रसन मुखपान , हँसन मुसकान , दशन - दमकान ,                         ...

श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे .....

सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 113से आगे ..... चौपाई : काल क...