(((((( हे श्याम.. हे मनमोहन... ))))))
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एक दिन सखिओं ने राधाजी के पाँव पर एक जख्म देखा ...
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डर गयी सखियाँ व् पूछने लगी कि कब.. कैसे हुआ ये जख्म ??
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चलो कोई लेप लगाओ इस पे.........
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श्री राधाजी कहने लगी अरे कुछ नहीं हुआ ...
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बहुत पुराना व् छोट्टा सा ही तो जख्म है ....
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सखियाँ बोली पुराना ... कितना पुराना ये तो ताज़ा लग रहा है ???
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राधाजी बोली श्यासुंदर से हमने बंसी छीन ली थी एक बार तो वो हमारे पीछे भागे
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इसी छीना झपटी में श्यामसुंदर के पैर का नाख़ून चुभ गया था !!
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सखियाँ बोली श्यामसुंदर को गये बरसों हो गये फिर भी ये जख्म ताज़ा कैसे है ??
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राधाजी बोली --जख्म तो पुराना है पर मैं इसे ताज़ा बना देती हूँ .....
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जब भी जख्म भरने लगता है मैं इसकी उपरी परत छील कर उतार देती हूँ .....
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ये मुझे श्यामसुंदर का दिया है इसको देखकर व् इस जख्म की पीडा से मुझे निरंतर श्यामसुंदर की लीलाओं की स्मृति बनी रहती है !!
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ये मेरे प्यारे का दिया है मुझे ये प्रियतम की याद दिलाता रहता है ..
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काश ये कभी न सूखे इसलिए इसका कोई भी उपचार न करना तुम ....
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हे श्याम.. हे मनमोहन... कहते हुए फिर अश्रुधारा प्रवाहित होने लग जातीं है श्री राधाजी की आँखों से !!
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ये है श्रीराधाजी जी का अगाध प्रेम ..हरे कृष्ण !!
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...
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राधे राधे ।