"आह ललिते तोहे मेरी सौ मोहे एक हूं बार प्रिया जू के चरणन की सेवा दिलवाय दीजो।। इन चरणन मह जो रस ह्वै सो अन्यत्र नाय पायो।। हे सखी! स्यामा जू के पाद पद्म मह पड़े रहने मह जो आनंद मोकूँ मिले सो त्रिभुवन मह और कहूँ नाय।। इन चरणन के दरसन बिनु मोहे चैन नाय सखी।।" स्यामसुन्दर ललिता जू ते आगे हा हा खाय रहे हते।। नैनन नीर बह्यो जात ह्वै, वाको दसा ललिता सों देख्यो नाय गयो।।
"अरी बावरी! मोकू तू कारो कारो भुजंग लिवाय ला।। यह कैसो सूनो जीवन जामे प्रिया जू की सेवा से बिछोह हो।। या जीवन को कोउ अर्थ नाय।।"
"अरी भोरी! तू ही ले चल।। मेरे प्राण स्यामा जू के बिना छट पटा रहा ह्वै।। स्वामिनी जू के चरणन बिना मोकूँ सिगरो सुख फीको लगे ह्वै।"
लाल जू की या दसा ते सिगरी सखियाँ फूट फूट कर रोयबे लगीं।। स्वामिनी जू को मान कैसो छुडायो जाय।। कल गहवर बन मह लालजी ने गुलाब सखी ते कही कि वे सांझ को आवेंगे गौचारण के पाछे और अकेले नाय, लाडली जू को हूँ लिवाय लूंगो।। सो आयके छुप कर महल मह बैठ गए।।। बेचारी गुलाब सखी ने थाल सजाय कर राखी कि स्यामा जू संग पिय को आरती उतारूंगी।। अबहूँ आये पिय! अब आईं स्यामा जू या आस मह तो कछु देर बीतयो।। पर जब तारे हूँ ओझल हायवे लगे तो गुलाब सखी ने जान लियो कि आज वह छलि गयी हती।। छलिया ने वासों छल कीन्हो।। सो बिलख बिलख कर रोयबे लगी और प्राण कंठ ते आयो तो,"हे स्यामा जू! हे प्यारी जु!" कहकर गुलाब सखी मूर्छित भई।।
स्यामा जू तो पुकार ते द्रवीभूत है गयीं और अपने अष्ट सखियन के संग प्रगट है क प्यारी जू ने गुलाब सखी को मस्तक अपने गोद मह राख्यो।। अपने कर कंज ते वाको केश सुधारयो और वाको मुख ते जल के छींटे लगाय वाको होश मह लायो।। पूरी बात सुनते ही स्यामा जू अपने कारुण्य स्वरुप मह स्तिथ है के प्रणय रोष करिके ललिता सखी ते बोलीं,"सखी आज देख लेना या छलिया स्यामसुन्दर महलन ते अंदर नाय आय पाये।। वाने मेरे सखी को खूब तड़पायो ह्वै।। वाको कह दीजो कि वह रस लंपट और हूँ ते जाए।। हमारी सखी को प्राण निकसते निकसते बच गयो ह्वै।।"
लाल जू को अपराध भारी हतो।। वाने गुलाब सखी ते वादों कियो हतो और वाको पूरो नाय कियों।। जा वे वचन नाय देते; गर दीन्हो तो स्यामा जू को लिवाय ले जाते। यासों ही प्रिया जू रुष्ट है गयी।। पर गुलाब सखी तो नयी ह्वै वाको कहा पतों कि या लीला ते पिय ने वाको नेह को मंथन कीन्हो।। अस्तु।
अब स्यामा जू को रोष अपनी जगह ते सही ह्वै।। वे कारुण्य मय ह्वै, काउ की पीड़ा नाय देख सके।। अब लालजी को विरह ने आन घेरयो।। जो दोउन एक है के दो रूप मह विलसते हते वामे विरह को कौन काम।। पर दोउन को लीला अनोखो।। हम निठुरण को दिखाय रहे हते कि रस रीति कहा ह्वै।। अब सिगरी सखियाँ ललिता जीजी के मुख को देखिबे लगी।। लालन की पीड़ा देख्यो न जाय।। वाके विलाप ते सिगरी सखियन को कलेजो टूट रह्यो हतो।। दोउन को कैसे मिलायो जाय।।
तब बावरी को जीजी ने कही कि "एक लहंगा नयी ले आय।। और नए चूडियन को इक टोकरों ला।। आज मानिनी को मान भंग को एक ही रास्तो दीखे ह्वै" बाँवरी ने सब सौंझ बनायी और तुरंत लेकर आई।
अब ललिता जू या सावरी सखी को महलन मह लेकर गयी।। सब सखियाँ परदे की ओट ते देख रही हती की आज और काह लीला होगो।। ललिता जीजी स्यामा जू को प्रणाम कर बोलीं,"हे प्यारी जू आज या चूड़ी बेचिवे वारि पहरी बार बरसाने आयी ह्वै।। ऐसी चूड़ी तो हमने आज हूँ नाय देखि।। नेक अपनों कर कमल आगे कीजो।।" भोरी स्यामा ने ललिता जू की बात मान ली।। जैसे ही स्यामा जू ने सावरी गोपी को अपने पास बुलायो वैसे ही स्यामसुन्दर ने वाके चरण पखारे और अपने विरह पीड़ित हीये को ढांढस बँधायो।। और स्याम सखी ने रंग बिरंगी चूड़ी धीरे ते स्यामा जू के कोमल हाथन ते पहिरायो।। इनके स्पर्श ते हू स्यामा जू बोली,"ललिते, मोहे पिय को याद आवे ह्वै।। या सखी के छूते ही मोकू स्यामसुन्दर की याद आवे ह्वै।। पर जो उन्होंने गुलाब सखी ते कीन्ही वासों मोकू बहुत पीड़ा भयो।। बिचारी गोपी गुलाब ठगी गयी!"
"अरी भोरी प्रिया जू! ये और कोउ नाय, या सखी हूँ प्रियतम ह्वै, नेक घूंघट उठाय तो देख।।" जैसे ही घूंघट उठायो ललिता जू ने, और स्यामसुन्दर लजाय कर प्रिया जू के चरणन ते अपनों मस्तक राख्यो।। लाडली जू हड बड़ायी और पिय को अपने हीये ते लगायो और अपने पास बिठायो।।
इतनो हल्ला मच गयो कि उधर गुलाब सखी ने महलन मह प्रवेश कियो।। युगल दोउ मिल वाको प्रेम दान दियो।। पर बावरी ते रह्यो नाय गयो।। सो बोली,"री सखी! तैने यह कहा कियो।। प्रिया जू ते लाल जू को शिकायत कियो! अरे जे विप्रलम्भ के क्षण हूँ मह प्रेम रस बढ़े।। सो तूने नाय जानी!" पर ललिता जीजी बोली,"पर सखी एक बात तो केहनो ही पड़ेगो की दोउ मिलि एक भये राधावल्लभ लाल।। पर आज नेह कैसो कियो जाय या रीत हूँ दोउन ने सिखायी।। छद्म वेश हूँ धारण कारणों पड़े तो पड़े, पर प्रेमास्पद को रिझानो चाहिए।। बोलो युगल सरकार की जय!"
गुलाब सखी युगल के चरणन मह पड़ी ह्वै।। वाको रस पान करने दें।। हा स्यामा।।
सभी स्नेही मानसप्रेमी साधकजनों को हमारी स्नेहमयी राम राम | जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम श्रीरामचरितमानस– उत्तरकाण्ड दोहा संख्या 116से आगे ..... चौपाई : सुनहु...
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राधे राधे ।